SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० श्रीमद्भगवद्गीता ( वेदान्ते ) प्रोक्तानि एतानि (वक्ष्यमाणानि ) पञ्च कारणानि मे ( मम वचनात् ) “निबोध ( जानीहि) ॥ १३ ॥ अनुवाद। हे महाबाहो। सर्वकर्मणां सिद्धये (निष्पत्तये ) सांख्ये कृतान्त ( वेदान्तमें ) कथित, ये वक्ष्यमाण पांच कारण हमारे वचनसे अवगत हो जाओ ॥ १३ ॥ व्याख्या। हे महाबाहो ! जिस शास्त्रसे ( तन्न तन्न करते हुए त्याग करते करते तत्त्व समूहका क्षय होनेके बाद ) आत्मज्ञानका उदय होता है, उसे सांख्य कहते हैं। और जो शास्त्र अविद्या, अध्यारोप, अपवाद द्वारा समस्त प्रपन्च की अनित्यताको समझाकर आत्माका . नित्यत्व दिखाता है, उसीको कृतान्त वा वेदान्त कहते हैं। - ____ ज्ञातव्य पदार्थ समूहको जिस शास्त्रसे संख्या की जाय, जाना जाय, उसे सांख्य कहते हैं अर्थात् वेदान्त। “कृतान्त”—यह शब्द सांख्यका ही विशेषण है। कृत अर्थात् जिसे किया गया-कर्म, इस कर्मका अन्त ( परिसमाप्ति ) जिससे होता है वही कृतान्त है, कर्मान्त वा वेदान्त सिद्धान्त। इसमें "यावानर्थ उदपाने” “सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते” इन सब वचनों के द्वारा आत्मज्ञानकी उत्पत्ति होनेके पश्वात् जो सर्वकर्मको निवृत्ति होती है, वही दिखाया गया। और उस आत्मज्ञानके लिये सर्वकर्मके निष्पत्तिके पांच कारण उक्त हैं। उन्हीं पाँच कारणोंको जानना आवश्यक है। भगवानने पश्चात् श्लोकमें उसे प्रकाश किया है ॥ १३ ॥ भधिष्ठानं तथा कर्ता करणञ्च पृथग्विधम् । विविधाश्च पृथक् चेष्टा देवं चैवात्र पचमम् ॥ १॥ . अन्वयः। अधिष्ठानं ( शरीरं ) तथा कर्ता ( उपाधिलक्षणो भोक्ता ) पृथविध ( नानाप्रकारं द्वादशसंख्यं ) करणं च (श्रोत्रादिकं), विविधाः पृथक् च ( कार्यतः स्वरूपतश्च पृथकभूताs) चेष्टाः ( प्राणापानादीनां व्यापाराः) अत्र (एतेषु ) एव पञ्चमं देवं ( चक्षुरायनुग्राहकादित्यादि सर्वप्रेरकोऽन्तर्यामी वा) ॥ १४ ॥
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy