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________________ २२३ षोडश अध्याय देवताकी अराधना करके प्रचूर अर्थ सञ्चय करूंगा, सर्वज्ञ होऊंगा, "असाध्य साधन करूंगा; इत्यादि प्रकारकी अनित्य सुखकी चेष्टा है। .. "अशुचिव्रताः"-जिन सबका व्रत अशुचि है। व्रत-नियम । किसी विषयमें सिद्धि लाभ करना हो तो आहार व्यवहारादिमें जिस नियमका पालन करने होता है, वही व्रत है। जिस प्रकार आहार व्यवहार द्वारा शरीरमें सत्त्वगुणकी वृद्धि हो, हृदयमें शान्त तेजका सन्चार हो, मन शुद्ध हो करके चञ्चलता ( संकल्प विकल्प ) को त्याग करे और सद् वस्तुको लक्ष्य करनेके लिये समर्थवान हो, वही शुचि व्रत है। जैसे सात्त्विक आहार, सात्त्विक व्यवहार इत्यादि। और जिस प्रकार आहार व्यवहारसे रज और तमोगुण बढ़ता है, मनमें चञ्चलता और मत्तता आती है, अहंकार बढ़ता है, सद्वस्तु लक्ष्य करनेकी शक्ति नहीं रहती, वे सब अशुचि व्रत हैं, जैसे राजसिक 'और तामसिक आहार व्यवहार इत्यादि। दुष्पूरणीय आकांक्षाको आश्रय करके ( जैसे भूत, यक्ष, नायिकादि साधन करके इन्द्रियका भोग चरितार्थ करनेके लिये वासना) दम्भमान-मद मोहित अविवेकियोंके ग्रहणीय जो अशुभ हैं, उन्हें ही ले लेते हैं। और मदिरा, मांस आदि सेवनरूप अशुचि व्रतमें दीक्षित होते हैं ॥ १० ॥ चिन्तामपरिमेयाच प्रलयान्तामुपाश्रिताः। कामोपभोगपरमा एतावदितिनिश्चिताः॥ ११ ॥ आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः। ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसब्चयान् ॥ १२ ॥ अन्वयः। प्रलयान्तां (प्रलयोमरणमेवान्तो यस्यास्तां ) अपरिमेयां (परिमातुमशक्यां ) चिन्ता उपाश्रिताः ( नित्यचिन्तापरा इत्यर्थः) काभोपभोगपरमाः ( कामाः शब्दादयस्तदुपभोग एव परमो येषां ते ) एतावदिति निश्चिताः (कामोपभोग एव परमो येषां ते ) एतावदिति निश्चिताः (कामोपभोग एव परमः पुरुषार्थो नान्यदस्तीति
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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