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________________ २२२ । श्रीमागवद्गीता हैं। इस अल्पबुद्धि प्रयुक्त वह लोग "यह जगत् स्त्री पुरुष संसर्गसे ‘उत्पन्न, काम ही इसका कारण है, इसके अतिरिक्त इसका और कोई दूसरा कारण नहीं.है" इस प्रकार सिद्धान्त दृष्टिका आश्रय करके, 'अर्थात् इस प्रकार नजरसे जगत्को देखता रहता है। इस प्रकार -स्वभावभ्रष्ट अल्पबुद्धि तथा काम-परायण होनेसे वे लोग परलोक और साधनको नहीं मानते, इसलिये वे लोग नाना प्रकारके उप हिंसात्मक कर्ममें प्रवृत्त होते हैं और जगत्का (प्राणिसाधारणका ) अहिताचरण करते हैं। इस कारण करके वे लोग केवल जगत्के क्षय के निमित्त ही जैसे प्रादुर्भूत होते हैं। मृत्यु ही जगत्का क्षय है। अर्थात वे लोग जन्म लेकर बार बार मरते ही रहते हैं; जन्म-मृत्यु रूप क्षयोदयको ही वे लोग भोग करते रहते हैं। इससे वे लोग कभी निष्कृति नहीं पाते। ( पश्चात् १६।२० श्लोक देखो) ॥६॥ काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः। मोहाद् गृहीत्वाऽसद्ग्राहान् प्रवर्त्तन्तेऽशुचिव्रताः ॥ १० ॥ अन्वयः। (ते) दुष्पूरं ( पूरयितुमशक्यं ) कामं आश्रित्य दम्भमानमदान्विताः सन्तः मोहात् असााहान् गृहीत्वा ( अनेन मन्त्रेणतां देवतामाराध्य महानिधीन् साधयाम इत्यादीन् दुराग्रहान् मोहमात्रेण स्वोकृत्य ) अशुचिव्रताः सन्तः (अशुचीनि • मद्यमांसादिविषयानि व्रताणि येषां ते ) प्रवत्तन्ते ॥१०॥ अनुवाद। ( वे लोग ) दुष्पूरणीय कामको आश्रय करके दम्भ, मान और मदयुक्त हो करके मोहवशतः ( इस मन्त्रसे इस देवताकी आराधना करके महानिधि समूह को प्राप्त होऊंगा इत्यादि प्रकार ) दुराग्रह समूहका अवलम्बन करके ( मय मांसादि विषयक) अशुचिव्रतपरायण हो करके (क्षुद्र देवताओंकी आरावनादिमें ) प्रवृत्त होते हैं ॥१०॥ व्याख्या। “असद्ग्राह" = जो सब अाग्रह वा इच्छा अखत् अर्थात् अशुभकर है, मुक्तिमार्गका प्रतिबन्धक स्वरूप है, बैसे फलाना मन्त्र सिद्ध करके स्तम्भन वशीकरण, उच्चाटन प्रभृति सीखूगा, फलाना
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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