SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादश अध्याय १२३, अनुवाद । हे धनन्जय ! यदि हममें चित्त स्थिर कर रखनेमें समर्थ न हो, तो अभ्यास-योगसे मुझको प्राप्त होने के लिये प्रयत्न करो ॥९॥ . व्याख्या। पूर्व जन्मार्जित उत्तम सुकृति न रहनेसे पूर्व श्लोकानुसार बिना चेष्टामें आपही आप आत्मामें मन बुद्धि स्थिरकी नहीं जाती, अभ्यासका प्रयोजन है। इसलिये भगवान कहते हैं कि, जैसे हमने कहा है वैसे करके यदि तुम चित्तको उस "मैं" के ऊपर स्थापन न कर सको तो, "मैं" होने के लिये बारम्बार चित्तसमाधानका अभ्यास करो। ६ष्ठ अध्यायका २६वा श्लोककी व्याख्या देखो ॥६॥* अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मा परमो भव। मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि ॥ १०॥ अन्वयः। ( यदि पुनः ) अभ्यासे अपि असमर्थः असि, ( तहिं ) मत्कम्मपरमः (मदर्थ कर्म मतकर्म तदनुष्ठानमेव परमं यस्य त दृशः ) भव; कांणि मदर्थ कुर्वन् अपि सिद्धिं भवाप्स्यसि ॥१०॥ अनुवाद। ( यदि) अभ्यासमें भी असमर्थ हो तोहमारे कर्ममें निरत हो जाओ, मदर्थमें समस्त कर्म करते रहनेसे हो सिद्धिलाभ करोगे ॥ १० ॥ * चित्त समाधान करने में अशक्त होनेसे भगवान् ९-११ श्ल कमें जो जो करने के लिये उपदेश किये हैं, सो सब अलग नहीं, साधनका पर पर क्रम है। प्रथम अभ्यासयोगसे आत्मत्व प्राप्तिकी चेष्टा, दूसरे मत् कर्मपरायणता, तीसरे मोगाश्रय, चौथा यतचित्तता, पञ्चम सर्व कर्मफल त्याग। प्रथम क्रममें असमर्थता न आने से दूसरे क्रममें पहुँचा नहीं जा सकता; उसी तरह दूसरे दूसरे क्रम सम्बन्ध भो जानना । जैसे चलते चलते शरीर ढीला पड़नेसे आपही आप चलना रुक जाता है, चलनेमें शरीरकी असमर्थता आती है, तैसे अभ्यास-योग की क्रिया करते करते भी उसमें असमर्थता आती है। तब मत्कर्मपरायणताका उदय होता है। पश्चात् इस क्रियामें भी असमर्थता आनेसे मद्योगाश्रय होता है; उसमें भी असमर्थता आनेसे चित्त संयत होता है। यह संयम अवस्था आनेसे ही सर्व कर्मफल त्याग हो करके कैवल्य स्थितिकी प्राप्ति होती है। ये सब आपही आप क्रम अनुसार उदय होती रहती है। असमर्थताको अवस्था समूह साधनमें निजबोध रूप जानना ॥९॥
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy