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________________ भंगलाचरण - सर्वात्मज होने पर भी जिसने करुणा परवश होकर आत्मविषयक सर्वरहस्यको जानके ( समझके ) व्यासदेवके समुदय वाक्य स्वयं लिखे थे, उस अतिल-देवपूजितपद सर्वार्थ सिद्धि प्रदान करनेवाले श्री गणेश .को नमस्कार करके मैं गीताकी योगशास्त्रानुसार व्याख्या प्रणयन करने में प्रवृत्त हुआ। जिनसे इस सुपाश्रय जगतकी सृष्टि-स्थिति-नाश-क्रिया सम्पादित होती है, जो एक हो करके भी विचित्र कौशलसे भिन्न भिन्न शरीर धारण करते हैं, जिनको योगीन्द्रगण इन्द्रिय रोधपूर्वक अन्तरमें तमसाके बाद स्थित पुरुष रूपसे अवलोकन करते हैं, उनको मैं निःश्रेयस प्राप्ति के लिये बार बार प्रणाम करता हूँ। __ हे ज्ञानमयि गीते ! तुम भी कृपा करके मेरी बोधगम्या होश्रो, वाणी भी सरस होकर मेरे जिह्वाग्रमें सर्वदा इस प्रकारसे नृत्य करे, कि जिसमें मैं तुम्हारे कल्याणप्रद, अतुल, अध्यात्ममय रहस्यको व्यक्त कर अज्ञ लोगोंको भी स्वभक्ति-मधुरित ब्रह्मानन्द रखसे प्राप्लुत कर सकू। - जिन्होंने कृपा करके मेरे अज्ञानाच्छन्न चक्षुको ज्ञानाञ्जन रूप शलाकासे खोलकर मुझको अखण्डमण्डलाकार चराचर व्याप्त तत्पदका दर्शन करा दिये, उन श्री श्रीगुरुदेवको नमस्कार करता हूं।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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