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________________ अष्टम अध्याय 371 अनुवाद। वेद, यज्ञमैं, तपस्यामें, तथा दानमें जो जो पुष्य फलका उल्लेख है, योगी उल्लिखित तत्त्वको अवगत होकर उन समस्तको अतिकम करते हैं, और आद्य परम स्थान ( विष्णुपद ) को प्राप्त होते हैं / / 28 // व्याख्या। वैदिक क्रियामें, यज्ञके क्रियामें, तपकी क्रिया में, दान की क्रिया में जो जो पुण्यफलका निर्देश किया हुआ है, वह समस्त स्वर्गादि भोग कराकर फिर मर्त्यलोकमें घुमाय लाता है। यह जानकर, समझकर, उन सबमें उपेक्षा करके योगीगण अपने उसी परम स्थानमें, पहले जहाँसे आये थे, उसी आदि स्थानमें-विष्णु पदमें उपनीत होते हैं // 28 // इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे अक्षरब्रह्मयोगो नाम अष्टमोऽध्यायः।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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