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________________ श्रीगणेशाय नमः। श्रीमद्भगवद्गीता । योगशास्त्रीय आध्यात्मिक व्याख्या। 'प्रथमोऽध्यायः ।। .. धृतराष्ट्र उवाच । धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सकः । ..... मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥१॥ .. : अन्वयः : धृतराष्ट्रः उवाच । हे संजय ! युयुत्सवः ( यो मिच्छन्तः)? आRET: ( दुर्योधनादयः मत्पुत्राः ) पाण्डवावे ( युधिष्ठिरादयः पाण्डपुत्राः) मर्मक्षेत्रे समवेताः ( मिलिताः सन्तः ) कि अकुर्वत ? ॥ १ry अनुवाद। धृतराष्ट्र पूछते हैं, हे संजय ! युद्धच्छु हमारे पुत्रगणने तथा पाहुपुत्रगणने युद्ध करने के लिये धमक्षेत्ररूप कुरुक्षेत्रमें मिलकर क्या किया ? ॥ १॥ __ व्याख्या। धृतं राष्ट्र येन सः "धृतराष्ट्र"। धृत शब्दसे पहिलेसे धारण करके रहे हैं जो, और राष्ट्र शब्दसे राज्यको समझना; जो महाशय पहिलेसे राज्य को धारण कर रहे हैं उन्हींको धृतराष्ट्र कहा जाता है। इस शरीररूप राज्यके सर्वत्र जिनका प्रभाव विस्तृत (फैला) है। शरीररूप राज्यको और सुख और दुःखका भोग करने वाला जो है उसीको धृतराष्ट्र जानना। इस शरीरके सुख दुःखका भोक्ता मन है। अतएव मनहीको धृतराष्ट्र कहके मानना। और मन जो है उसको स्वयं ( शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गन्ध ) विषय लेनेकी शक्ति नहीं है। ज्ञानेन्द्रिय ( कणे, त्वक, चक्षु, जिह्वा, नासिका ) की सहायतासे . सिक सहायतास
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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