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________________ सप्तम अध्याय ३४१ करता है; तब जन्म-जन्मान्तरीण कर्मसंस्कार समूह इकट्ठ उपस्थित होकरके उनको आक्रमण करता है, मृत्यु भी बल पूर्वक उसके स्थूल देह के साथ संस्रव छिन्न करता रहता है। इस अवस्थामें जीव यन्त्रणाके मारे अस्थिर और किंकर्तव्य-विमूढ़ होयके आत्मविस्मृत हो जाता है। इसलिये देहत्यागके साथ पुनर्जन्मका बीज स्वरूप किसी एक संस्कारको अवलम्बन करके चला जाता है। किन्तु जो साधक साधनफलसे परमात्माका आश्रय ले सकें, उनको तद्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ * सब मालूम होनेसे, मृत्युकालमें मृत्यु यन्त्रणासे अभिभूत नहीं होते; वह पुरुष मृत्युके पूर्वलक्षण जानते मात्र ही पञ्चतत्वों के ऊपर कूट भेद करके सहस्रार ब्रह्मपदमें उठ जाते हैं । उस अवस्थामें मृत्युयन्त्रणा और पूर्वसंस्कार उनको छू नहीं सकता। अतएव वह साधक विचलित वा आत्मविस्मृत न होकरके युक्तचित्तही हो रहते हैं, परमात्माको प्राप्त होते हैं और उसीमें मिल जाते हैं ॥ ३०॥ इति श्रामद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्र श्रीकृष्णार्जुन संवादे ज्ञानविज्ञानयागो नाम सप्तमोऽध्यायः * यह सब क्या है, सा अष्टम अध्यायके ३१४ श्लोकमें भगवद् वाक्यसेही प्रकाश है, देखिये ॥ ३०॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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