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________________ ३०६ श्रीमद्भगवद्गीता बाद संसिद्धि लाभ होती है; परन्तु प्रयत्न तीव्र होनेसे उस खंड प्रलय के बाद जो जन्म होता है, उस प्रकारके अनेक जन्म अर्थात् अनेक प्राणायामसे संसिद्धि लाभ होती है। इसलिये पतञ्जलि ऋषिने सूत्र लिखा है कि,-"तीब्रसम्बेगानामासन्नः” अर्थात् तीब्र सम्बेग वालोंके "आसन्न" है अर्थात् समाधि वा योगसंसिद्धि शीघ्र होती है; (कार्यप्रवृत्तिके मूलीभूत दृढ़तर संस्कारका नाम सम्बेग है)। अतएव स्मृतिमें भी है-“अत्युत्कटपूण्यपापानामिहैव फलमश्नुते"। सम्बेग तीव्र होनेसे योगी एक जीवन में ही कतिपय प्राणायाममें * संसिद्ध होते हैं; किन्तु तीब्र सम्बेग न होनेसे एक जीवनमें नहीं होता, अनेक जन्म लेना पड़ता है। संसिद्धि ( समाधि ) लाभ होनेके पश्चात् ही, उसके परिपाकमें असम्प्रज्ञात निवौंज समाथि-कैवल्यस्थिति --- परागति-ब्रह्मनिर्वाण प्राप्ति होती है ।। ४५ ॥ तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः । कम्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥४६ ॥ अन्वयः। योगी तपस्विभ्यः अधिकः ( श्रेष्ठः ) ज्ञानिभ्यः अपि अधिकः मतः (शातः ); योगी कम्मिभ्यः च अधिकः ( विशिष्ठः); तस्मात् ( कारणात् ) हे अर्जुन ! त्वं योगी भव ॥ ४६॥ अनुवाद। हमारो मता में योगी तपस्वोसे श्रेष्ठ है शानीसे भी श्रेष्ठ है; योगी कमीसे भी श्रेष्ठ है; अतएव, अर्जुन ! तुम योगी हो जावो ।। ४६ ॥ व्याख्या। जो साधक कर्मफलका आश्रय न करके कार्य कर्म करते हैं, योगी वही हैं। क्योंकि, कर्मफल का आश्रय न करनेसे सर्वत्र .. * योगीगणने स्थिर किया है कि, प्राणायाम यथानियम एकासनमें बारह दफे करनेसे ही मनका "प्रत्याहार" होता है। इसके बारहगुणा, १४४ दफे प्राणायाममें "धारणा" होती है, जिसके बारहगुणा, अर्थात् १७२८ दफे प्राणायाममें "ध्यानअवस्था" होतो है; जिसके बारहगुण अर्थात् २०७३६ दफे प्राणायाममें "समाधि" होती है ॥४५॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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