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________________ २०६ श्रीमद्भगवद्गीता पड़ता है, वही विकर्म है। यह विकर्म पूर्वकृत कम के संस्कार, संचित और प्रारब्ध कमरूपसे जीवको फलभोग कराता है। (३) अकम। कम जब प्राण और अपान मिलकर स्थिर हो जायके वृत्ति-विस्मरण होवे-तुष्णीम्भाव आवे, वही अकम (जो कम नहीं ) है। [अवतरणिका (४) परिच्छेद देखो। "मैं-मेरे" वा "आत्मा-विषय” इन दोनोंकी मिश-अवस्था ब्रह्म, मिल-अवस्था शिव (दृष्टि), और छाड़ (अलग )-अवस्था जीव (सृष्टि ) है * । जिस क्रियासे विषयका विकाश हो, वह विकम, और जिससे आत्माका विकाश हो, वह कम है; मुख्य बात यह है कि विषयमुखी वृत्ति विकम, आत्ममुखी वृत्ति कम है। आत्ममुखी वृत्तिमें जब "मेरे" आयके “मैं” में मिले, तब आत्मचैतन्यमें जो वृत्तिविहीन स्थिरभाव पाता है वही योगशास्त्रका अकम है । ( पर श्लोक देखो ) ॥ १७ ॥ कर्मण्यकर्म यः पश्येदकमणि च कर्म यः। . स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकम्म कृत् ॥ १८ ॥ अन्वयः। यः कर्मणि अकर्म, यः च अकर्माणि कर्म पश्येत् मनुष्येषु सः बुद्धिमान् सः युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ( च ) ॥ १८ ॥ अनुबाद। जो कर्म में अकर्म तथा अकर्म में कम्मं देखते हैं, मनुष्यके भीतर वही पुरुष बुद्धिमान वही पुरुष युक्त, और वही पुरुष कृत्स्नकर्मकृत् है ॥ १८॥ * इन तीन अवस्थाओंका एक उदाहरण दिया जा सकता है। एक टुकड़ा मिश्री को जलमें मिझोय देनेसे, जब तक मिश्रीका कठिन अवस्था रहता है, तब तक जल और मिश्री के छोड़ ( अलग ) अवस्था। मिश्री गल गया, लेकिन वो गला हुआ अवस्थामें एक जगहमें स्थिर हुआ है; व्याप्त होके सब जलको मौठा किया नहीं, तब जल-मिश्रीके मिल अवस्था; और मिश्री जब व्याप्त होके सब जलको मीठा कर चुके, जल-मिश्री एकरस होय गये, तब जल-मिश्रीके मिश अवस्था जानो ॥ १७ ॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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