SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ श्रीमद्भगवद्गीता सम्पन्न साधक भी कवि हैं। इस प्रकारसे क्रियामार्गमें प्रत्यह उन्नतिशील विवेकी मेधावी तत्वज्ञ साधकके भी, जाग्रत अवस्थामें शरीरधर्मा प्रतिपालनके लिये शब्दस्पर्शादि विषय भोग करनेसे, चित्तमें संगदोष-स्पर्श होता है। इसलिये फिर दूसरे रोज क्रियाके समय सुषम्नामार्ग में आत्ममन्त्रका स्मरण करते करते उठ जानेसे भी, समाहित होनेके पहिले विषय-संस्पर्शके लिये वृत्तिनिचय मनमें उदय होते हैं; किन्तु तब मन क्षीण होके अवश हो पानेसे, विषय-स्मृतिकी खिचाईमें पड़के चैतन्यसे विच्युत हो जाता है; इसलिये चैतन्यमें समाहित न होके विषयमें समाहित होने पड़ता है। समाधिके ठीक पूर्व क्षणमें वो जो क्षीण स्मृति-सम्पन्न अवश अवस्था आती है, उस समय कम-वेग चैतन्यमुखमें रहता है, कि विषयमुखमें रहता है, उसका ज्ञान रहता नहीं; जिसलिये समाधिमें जो तुष्णीम्भाव होता है, वह ठीक अकर्म है कि नहीं अर्थात् वह स्थिरभाव चैतन्यमें या जड़ विषयमें, वह भी समझनेकी शक्ति नहीं रहती; इस समयमें मोहित होयके रहना पड़ता है, “कर्म अकर्म" का बोध रहता नहीं। समाधि भंग होनेके पश्चात् जब मन अच्छी तरह जाग उठता है, तब वो स्थिरभाव योगनिद्रा वा समाधि है, या विषयनिद्रा वा निद्रा है, वह समझमें आता है। क्रिया करके भी जो विषय-निद्रामें अभिभूत होना पड़ता है, यही अशुभ है, क्योंकि यही संसार-बन्धन है, कौन कर्म करनेसे इस अशुभसे मुक्ति मिलती है, वही उपदेश श्रीगुरुदेव पश्चात्के श्लोकोंमें प्रकाश करते हैं ॥ १६ ॥ कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यच विकर्मणः। अकर्मणश्च बोद्वव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥ १७ ॥ अन्वयः। “हि ( यस्मात् ) कर्मणः ( शास्त्रविहितस्य ) अपि बोद्धव्यं (अस्ति), विकर्मणः (प्रतिषिद्धस्य ) च बोद्धव्यं ( अस्ति एव ), ( तथा ) अकर्मणः (तुष्णोम्भावस्य ) च बोदव्यं (अस्ति); ( यस्मात् ) कर्मणः (कम्माकर्मविकामणां ) गतिः (याथात्भ्यं तत्त्वं ) गहना (विषमा दुज्ञेया)।"-इति शंकरः ॥ १७ ॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy