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________________ . गीता परिचय करके उनके योगराज्यके कुरुक्षेत्रके अनुरूप ही भोगराज्यमें कुरुक्षेत्रका संघटन किया था। इसका विपरीत भाव अनुमान करके गीताको कवि कल्पित रूपक कहना ठीक नहीं है। जब भगवानने अर्जुनको इस प्रकारसे गोताका उपदेश किया, तब संजयने व्यासदेवके प्रसादसे दिव्य दृष्टि लाभ करके श्रीकृष्ण-मुखनिःसत उस वचनावलीसे विदित होके धृतराष्ट्र के निकट अविकल वर्णना की। सर्वज्ञ भगवान व्यासदेवने जगत्के हितके लिये श्रीकृष्णार्जुनकी वही सब कथा अविकल लिपिबद्ध करके धृतराष्ट्र संजय-संवाद रूपसे महाभारतमें सन्निविष्ट किया है। सच है कि गीताका उपदेष्टा वह महापुरुष इस समय स्थूल शरीर . वारण करके वर्तमान नहीं है, परन्तु वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म आत्मस्वरूपसे सर्व प्राणियों के अन्तरमें वर्तमान है, वह नित्य है, और अनादिकालसे सर्व प्राणीके हृदयमें विराज करके वंशी वादन कर रहा है। मानव, वासना वश होके विषयके विषम फन्देमें पतित होनेसे, उनका उस मोहन रूप देखने और वंशीध्वनि सुनने नहीं पाता है। जो आत्म-योगानुष्ठान से आवरण-शक्तिको हटाके विषय अतिकम कर सकेंगे, वही उस पुरुष • का साक्षात्कार लाभ कर सकेंगे, वही उनको ( भगवानको ) अपने शरीरके धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में प्रवृत्ति-निवृत्ति समूहके बीच में सारथी रूप से पावंगे और उनके मुखसे निम्स्त गीता श्रवण करेंगे। यह बात अभ्रान्त सत्य है, अमूलक कल्पना नहीं है, परन्तु ऐकान्तिक चेष्टांका प्रयोजन है। उद्यमशील पाण्डव लोगोंने भक्तिके बलसे भगवत्कृपा लाभ करके जिस प्रकारसे पृथिवीमें धर्मराज्य स्थापन किया था, सांधक भी उद्यमशील और भक्तिमान होनेसे ठीक उसी प्रकारसे भगवत् कृपालाभ करके अपने शरीरमें “असपत्नं ऋद्धं राज्यं' अर्थात् आत्म राज्य स्थापन कर सकेंगे। इसलिये गीता एकाधारमें ऐतिहासिक घटना भी है, आध्यात्मिक घटना भी है। इसलिये कहा गया कि, गीता इतिहास मूलक होकरके भी अविच्छिन्न ज्ञान प्रवाह स्वरूप है।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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