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________________ द्वितीय अध्याय १०७ त्मिका बुद्धि-युक्त होता है, अर्थात् सकाम होता है । इस सफाम कमको नितान्त निकृष्ट जानना चाहिये, क्योंकि, काम संग दोष करके उत्पन्न होके जीवको तत्प्रसूत फलमें आबद्ध करता है। और भी फलहेतु अर्थात् फलकामी जो है वह सब कृपण हैं। कृपण जैसे अर्थके (रुपये पसेके) प्रति ममता परायण होकर, धन खर्च करके कोई कार्य कर नहीं सकता, केवल माथे पर धनका बोझ लाद कर मरता है; वंसे कामना-परायण लोग चिरकाल कामनाका बोझ माथे पर ढोके मरता है (जो बोझ फिर परजन्मके लिये सञ्चित कर्म-संस्काररूपमें रह जाता है ), कामना परित्यागसे जो नित्य सुख मिलता है, वह सुख वह मनुष्य नहीं पाता। अतएव तुम बुद्धिका श्राश्रय करो,इधर उधर न देखकर मनको विषय-विहीन कर स्थिर लक्ष्यसे उसी तारकब्रह्ममें लीन कर दो ॥ ४६ ।। बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्मात् योगाय युज्यस्व योगः कम्मसु कौशलम् ॥ ५० ॥ अन्वयः। बुद्धियुक्तो ( पुरुषः ) इह सुकृतदुष्कृते उभे जहाति तस्मात योगाय युज्यस्थ, कर्मसु ( यत् ) कौशलं ( तत् ) योग ॥५०॥ अनुवाद। बुद्धि द्वारा ब्रह्ममें युक्त होनेसे इसी जन्ममें सुकृत-दुष्कृत दोनों ही का त्याग होता है, अतएव योगके निमित्त यत्न किया करो; कम्म में कौशल प्रयोग करनेका नाम योग है ॥ ५० ॥ व्याख्या। बुद्धिके उस विन्दुमें आटक पड़नेसे, 'विश्वज्ञानका विलुप्त होके, निश्चल ब्रह्ममय होना पड़ता है;- उसी अवस्थाका नाम चैतन्य समाधि है। उस समय शरीरका कोई भोक्ता नहीं रहता, इस कारण कालचक्रमें आगत सुकृत-दुष्कृत प्रारब्ध कर्म समूह जीवको आश्रय रूपसे न पाके श्रापही पाप नष्ट हो जाता है। फिर अंकुरित नहीं होतीं। इस प्रकार निष्कृत्विको प्राप्त होनेके लिये योग
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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