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________________ सप्तदशसर्ग का कथासार राजा कुश को कुमुद्वती से अतिथि नाम का पुत्र हुआ। सूर्य जैसे उत्तरायणदक्षिणायण द्वारा दोनों दिशाओं को पवित्र करता है ऐसे ही अतिथि ने मातृवंश और पितृवंश दोनों को कृतार्थ किया था। योग्य पिता कुश ने पुत्र को आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति में पारंगत कराकर उसका विवाह कर दिया। तभी अपने पूर्वजों की भांति कुश इन्द्र की सहायता के लिये गये जहाँ उन्होंने दुर्जय दैत्य को मारा और उसीके द्वारा स्वयं भी मारे गये। पति के वियोग में कूमद्वती ने प्राण त्याग दिये। राजा की अन्तिम इच्छा के अनुसार मन्त्रियों ने अतिथि के अभिषेक की तैयारी की। ऊँची वेदीवाला चार खम्भों पर स्थित मण्डप बनाया गया। उसमें भद्रपीठ पर बैठाकर सोने के कलशों में अनेक तीर्थों से लाये जल से उसे स्नान कराया गया। बाजे बजने लगे। कुल के वृद्धजनों ने दूर्वा, यवांकुर आदि से उसकी मंगलकामना करते हुए आरती उतारी, परछन किया। पुरोहितों ने अथर्वमन्त्रों से उसपर अभिषेक किया। चारण लोग विरुदावली पढ़ने लगे। इस अभिषेक के अन्त में अतिथि ने विद्वानों को इतना धन दिया कि उनके अपने यज्ञादि सानन्द सम्पन्न हो सकें और विद्वानों ने उसे मुक्तकण्ठ से आशीर्वाद दिया। अभिषेक की प्रसन्नता में राज्य में कैदियों को मुक्त कर दिया गया। मृत्युदण्ड पाये लोगों को क्षमादान मिल गया। भार ढोनेवाले पशुओं पर अधिक भार न लादने की घोषणा हो गई। गौत्रों का सारा दूध उनके बछड़ों को पीने देने का आदेश हो गया। पिंजरों में बन्द पक्षी मुक्त कर दिये गये। ___ तब अतिथि राजसी अलंकरण के लिये भवन के दूसरे भाग में गये जहाँ हाथीदांत के बने सिंहासन पर भव्य चादर बिछी थी। उसपर उसके बैठने पर प्रसाधकों ने हाथ धोकर धूप से उसके केशों को सुगन्धित किया। मोतियों की लड़ों से, जिनपर पद्मरागमणि जड़ी थी उसे सजाया। कस्तुरीमिश्रित चन्दनलेप से अंगराग लगाया। उसपर गोरोचन से पत्ररचना की। हंस के चिह्नवाले रेशमी वस्त्र को धारण करके वह राज्यश्रीरूप बहू का सुन्दर वर प्रतीत होता था। इस प्रकार सुसज्जित होने पर छत्र, चामर आदि राजचिह्नों को लिये हुए जयजयकार करते सेवकों-सहित
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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