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________________ xiv रघुवंशमहाकाव्य इनमें प्रारम्भ के ६ ग्रन्थ (३ नाटक और ३ काव्य) तो अन्तःसाक्ष्य और बहिः साक्ष्यों के आधार पर निश्चित ही एक व्यक्ति की कृतियाँ हैं। ऋतुसंहार को भी इसी कालिदास का परम्परा से माना जाता है। कुन्तलेश्वरदौत्य को क्षेमेन्द्र ने कालिदास के नाम से उद्धृत किया है । वह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं । शेष ग्रन्थों की मीमांसा अपेक्षित है। कालिदास-जैसे सिद्धसरस्वतीक और प्रतिभाशाली कवि ने केवल ६ ग्रन्थों की ही रचना की हो, उसकी अन्य स्फुट रचनायें न हों, यह संभव नहीं। किन्तु इन ग्रन्थों की साहित्यिक परिभाषाओं तथा कालिदास की निर्मितिकला के आधार पर व्यापक विवेचना किये बिना इसका निर्णय नहीं हो सकता। कालिदास के विचार और रचनानैपुण्य कालिदास हिन्दूसंस्कृति के प्रतिनिधि-कवि हैं। चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष), वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और आश्रम (ब्रह्मचर्य, गहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) व्यवस्था, अवतारवाद, पुनर्जन्म की मान्यता, जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी संस्कारों का साङ्गोपाङ्ग वर्णन हमें इनकी रचनाओं में प्राप्त होता है। 'त्यागाय संभृतार्थानां' से ये स्पष्ट करते हैं कि कमाई त्याग के लिये ही होनी चाहिये। 'इष्टप्राप्ति का एकमात्र साधन तपस्या ही है-इस सिद्धान्त की जिस सार्वभौम रूप में स्थापना कालिदास ने की है ऐसी किसी अन्य कवि ने नहीं। इनका प्रत्येक पात्र तपस्या की कसौटी पर कसा गया है। और तो और, इन्होंने साक्षात् ईश्वर को भी तपस्या करने को बाध्य किया है-'स्वयं विधाता तपसः फलानां केनापि कामेन तपश्चचार'। तपस्या द्वारा भगवान् को भी खरीदा हुअा दास बना डाला है-'अद्यप्रभृत्यवनताङ्गि तवास्मि दासः क्रीतस्तपोभिः' । प्रेम का भारतीय आदर्श क्या है-इसे इनकी रचनाओं में स्पष्ट देखा जा सकता है। ___कालिदास भारत को एक अखण्ड राष्ट्र मानते हैं। उनके काव्यों में पूरे भारत की सभ्यता का दिग्दर्शन होता है और उनके नाटक विश्व के रंगमंच पर भारतीय संस्कृति का भव्य रूप दिखाते हैं। अभिज्ञानशाकुन्तल के नान्दी-श्लोक तथा कुमारसंभव (६।२६) में उन्होंने अष्टमूर्ति (सूर्य, चन्द्र, यजमान, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) महादेव (ईश) की
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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