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________________ मेघदूत : एक अनुचिन्तन श्रीरञ्जन सूरिदेव यह लेखक के 'मेघदूत' पर लिखे गये स्फुट लेखों का संकलन है। कालिदास की इस विलक्षण कृति ने सदा ही रसिकों को आकृष्ट किया है। दूतकाव्य की तो एक अभिनव परम्परा ही इससे प्रारम्भ होती है। आधुनिक काल में भी इसके अनेकानेक अनुवाद हुए हैं और संस्करण मुद्रित होते रहते हैं। प्रस्तुत संस्करण अनेक के बीच भी उल्लेख्य सिद्ध होगा। सामान्य रूप से कालिदास एवं विशेष रूप से उनकी इस कृति के संबंध में अद्यावधि प्राचीन तथा अर्वाचीन विद्वानों ने जो कुछ लिखा है उसे यदि एकत्र देखना हो तो इस संस्करण से यह संभव हो जाएगा। प्राचीन टीकाओं, पाश्चात्य विद्वानों के विचार तथा कवि और उसकी कृति के विषय में अपने अध्ययन-अनुसन्धान के बल पर श्रीरञ्जनजी ने 'मेघदूत' का पार्यन्तिक संस्करण प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। पूर्वार्ध में कालिदास के समय तथा उनकी काव्यकला एवं 'मेघदूत'-विषयक अनेकानेक समस्याओं पर योग्यता से प्रकाशन डाला गया है। रु० 45 विक्रमोर्वशीयम् व्याख्याकार : रामाभिलाष त्रिपाठी 'विक्रमोर्वशीयम्' में महाकवि कालिदास ने यौवन की उद्दाम वासना से उत्पन्न कामुक पुरुष को प्रेमिका के विरह में एकदम पागल बना देने वाले प्रेम का निरूपण किया है। कालिदास ने एतद्द्वारा एक वैदिक प्रेमाख्यान को-ऋग्वेद तथा शतपथ ब्राह्मण में वर्णित पुरूरवा तथा उर्वशी की प्रेमकथा को-कमनीय नाटक के रूप में प्रस्तुत किया है। इसका प्रस्तुत संस्करण छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। ऊपर मूलपाठ तथा नीचे अन्वय, शब्दार्थ, हिन्दी अर्थ, संस्कृत व्याख्या तथा टिप्पणी देकर उपयोगी बनाने का भरसक प्रयास किया गया है। टिप्पणी में व्याकरण-संबंधी बातों का स्पष्टीकरण, अलंकार एवं छंदों का विवरण दिया गया है। एक विस्तृत भूमिका में कवि एवं कृति से संबंधित सभी आवश्यक विषयों पर विचार किया गया है / परिशिष्ट में श्लोकानुक्रमणी तथा सुभाषितों का संकलन है। रु. 15 मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली वाराणसी पटना मद्रास
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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