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________________ xii रघुवंशमहाकाव्य - १. मालविकाग्निमित्र की कथा से सिद्ध है कि कवि को शुङ्गवंश के इतिहास का पूर्णतया ज्ञान था। २. शुङ्ग-सीमा के अन्तर्गत प्राप्त हुए भीटा के एक मुद्राचित्र में ठीक वही दृश्य अंकित है जिसका वर्णन अभिज्ञानशाकुन्तल के प्रारम्भ में हुआ है। ३. कालिदास की शैली कृत्रिमता से सुतरां मुक्त है जो पतंजलि के महाभाष्य से मिलती है, और उन्होंने कुछ वैदिक शब्दों का प्रयोग भी किया है । यह प्रवृत्ति ई०पू० ३०० से ई० सन् के प्रारम्भिक काल तक पायी जाती है। ४. ई० प्रथम शताब्दी में रचित हाल की गाथा-सप्तशती में विक्रमादित्य को उद्धृत किया गया है। ५. कथासरित्सागर में मालवगण के संस्थापक, काव्यकला के प्रेमी उज्जयिनी-नरेश विक्रमादित्य को परमशैव कहा गया है। कालिदास के ग्रन्थों से भी स्पष्ट संकेत मिलता है कि वे शैव थे और उज्जयिनी के विषय में उनका पक्षपात देखते ही बनता है । अतः सुतरां सिद्ध है कि वे विक्रमादित्य की सभा के रत्न होंगे। ६. इन्दुमती-स्वयंवर के प्रसङ्ग में कालिदास ने पाण्ड्य-नरेश का वर्णन किया है और उनकी राजधानी उरगपुर बताई है। प्रथम शताब्दी में पाण्डयों का राज्य विद्यमान था और उरगपुर ही उसकी राजधानी थी। चतुर्थ शताब्दी में पाण्ड्यों की सत्ता समाप्त हो गई। ऐसे ही अनेक प्रमाणों से यह मत प्रायः उचित लगता है कि कालिदास ई० पू० प्रथम शताब्दी में विद्यमान थे और विक्रमादित्य से उनका गहरा सम्बन्धं था। कालिदासत्रयो जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में राजशेखर के नाम से एक पद्य उद्धृत है एकोऽपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित् । शृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयी किम् ॥ इसके आधार पर लोगों ने कल्पना की है कि कालिदास नाम के तीन कवि हुए हैं। किन्तु आज तक यह कोई निश्चय नहीं कर सका कि ये तीन १. संवाहण सुह रस तोसिएण देन्तेण तुअ करे लक्खम् । चलणेण विक्कमाइत्त चरिअं अणुसिक्खिनं तिस्सा ॥(गा०सप्त० ५.६४)
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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