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________________ नाष्ट एव आयाजन KARN एम. ए. पीएच. डी. तथा [.si. मलय होशी पीएच.डी.ना गाईड, मुंबइ गुजराती विभागना अध्यक्ष अनेक संमेलनो सेमिनार अने ज्ञानसत्रमा भाग ले छे श्री वीर परमात्मा को वैशाख शुक्ल दशमी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ ओर दूसरे दिन वैशाख शुक्ला एकादशी को पावापुरी में चतुर्विध संघ की स्थापना की, वो मगध की पावन भूमि पर चतुर्विध संघ को प्रणाम करता हुँ। और चतुर्विध संघ को आगामी काल में किस दृष्टि से कार्यान्वित हो कर आगामी आयोजन करना होंगा उस दिशा मे मेमे कुछ चिंतनबिंदु प्रस्तुत करूंगा। चतुर्विध संघ एक अतिशय महत्त्वपूर्ण एवं गौरवशाली संस्था है। करीब २५७० साल के अपने कार्यकाल के दौरान अनेक तुफान ओर चक्रवातो का सामना करता हुआ फीर भी आज भी देदीप्यमान आभामंडल के साथ भारतवर्ष ओर विश्व में एक महत्त्वपूर्ण धर्म-संस्था के रुप में जीवित है इतना ही नहि, ये संस्थाने जीवदया जैसे प्रश्नो में भारतवर्ष में अपना अनुठा नेतृत्व भी प्रदान कीया है ओरं समुचे विश्व का ध्यान खेंचा है। ये चतुर्विध संघ का जैन शास्त्रो ने अपार गौरव कीया है। उस को २५वे तीर्थंकर की उपमा भी प्रदान की गई है। जो संघ परमात्मा की आज्ञा अनुसार अपना दायित्व बजाता है। वो संघ वास्तविक संघ है ओर आज्ञाविहिन संघ को हड्डीओ के पीजर समान गीना है। ये संघ को गुणरत्नो की खाण गीना गया है एवं संघ के साधर्मिको के वात्सल्य की जैन मात्र का आवश्यक कर्तव्य गीना गया है। कोई भी धर्म हो, उसे अपना कार्य को कार्यान्वित करने के लीए धर्म । पालन करनेवाले लोगों में एक व्यवस्थाप्रणाली स्थापित करनी पड़ती है। बीना (जागधारा - RAE M AIहित्य SIMAR E-3)
SR No.032594
Book TitleGyandhara 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2011
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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