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________________ EPIGRAPHIA INDICA [VoL.XXIX १ तमयावामनबनानुविधामः का सपतु स रामः सवपः ॥१॥ स्मितन्योल्मालेपोच(प) बललितकः कवचयशितित्पूर्वत्पनेस.. 3 गगलितनागो विभसितः । मुटे लादोला (ना) शुगत इति भूषाप्रतिकृते तेगों याः शं (प) भूः स्फटिकाचितिविरः ॥२॥ पुरा रामास्वा (ब) परम 4 सेतुविलसत्सव (4) सत्वावि नवनिह तग रचितवान् । प्रतिकामपाडा तब विपरराज्ये भगवति प्रमावो निषि(वि)नं. गिरिपरमातचंय जप ॥ - B॥॥ पराभीत्योनी पृतमकुची कानपक्षणा महाकालोसपा सनमणाधिनता । प्रसमानी प्रयामा स्मितमयनुनी 8 दक्षिणतमा स्तुबाकाली विद्यादितिसुतपनानीह लभते ॥ चतुर्भिः कैलालस्कृरितारिणि मतपटेः मुंगे7 लिप्तः स्मरति सुनिता पनवना । पोहानयतकरा यांन(वाद) गगता रमे श्रीमते यो मुखमपि स मतभवनवान् ॥५॥ 8 पदव्या भास (स्व) स्फटिकहिमकुंदाजगपादपाना चासो वा मुकुरपचिपासनगता । नवीना बीणाभूतिषिहरिहगाबिकनुता स9 रस्वत्यास्ता [न]: सुमतिकतवे पारपतये ॥६॥ नई पानी मन्ना पिया (म) मपि पाना मणिलसकिरीटदुखोतां मणिषटलसत्तव्यचरणां । त्रिनेत्रा 10 स्मेरास्यां समणिचषकाजो (जो)चतकरी अपारक्ता भत्ता भगत भुवनेशी पृषधां ॥७॥ एगालः बंडगो (खड्गो) ललितकमली हीमयमुनः क एष गी]11 हरु (ग्) लघुकलितशक्तिहंसकर: । हलांसो हल्लली प्रततकनमायोऽनलवधूस्तुतिमंत्र जपचा जयति परणीशो मनुरिव ॥ कपो12 लोल्लोलत्कनकविलसत्कुंडलयुगां (ग) मुल वि(वि) प्राणां कनकविकसच्चपकचि । गदा दीराति करगरिपुजिह्वां बगला13 मुली ध्यायेचस्तहिमुखमुखसंस्तंभनविधिः ॥॥ शतायुः सिदि वा सबसि ब(क) हरि विवषती प्रसिद्धि लोके वा सततमृग14 - बिगता । सुनानादि का सुभगतवृद्धि पनगिरी समृद्धि भक्तानां सवि हरसिदि भव मनः ॥ शिवे राज 1 The form aingala is evidently derived from the word ingala which is . Prakrit oquivalent of angira. * The sign of pisarga appears above the lino : apparently it was first omitted and supplied later on.
SR No.032583
Book TitleEpigraphia Indica Vol 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirananda Shastri
PublisherArchaeological Survey of India
Publication Year1951
Total Pages432
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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