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________________ THE INDIAN ANTIQUARY [JUNE, 1916 तर राणी भाम्बा बोचा। नरमा स्पर्श दी भभिमवा । दुष्टि दुराचारिणीर खिर्ड काम की पापिणी ॥३५॥ जोई नीच जणणी ना कहर | विष्णुकपि० भावी मह रहा। करहले माणस सिउँ वात | हरषवदन तवसमात ।। ३५१ ।। जई राय मा प्रछन्नगति जई। मिरखाबाठा छाना रही। विणकप ते गहसचडी| भावी गठखी राहते घडी ।। ३५२॥ देखी राब रॉणी प्रति कहद । विष्णुरूप सह व्यापी रहा । मनमों काम करीसा कोडिसिवि भूपति रहिसकर जोरि ॥१५३ ।। एह जमाईतणा प्रसादि। मोग सिर सही कीजावाद । सर्व देस सीमा तणा|राय करवा मॉडर भापणा ॥३५४॥ ते सीपाडा विग्रह काणि । भावी रहया ते राय नह पासि । नबरपोलिदेवरावहराब| सहको आकुल व्याकुल थाय || ३५५ ॥ राय कुमरीमह कहाविहसि ।तबेटी मा महिमा किसि। ए जमाई छतई मुझ दुक्ख । नरबीजाकिम लहिसासुक्ख ॥ १५ ॥ भाविउ कोलिक जव थईरासि कमरी कहर से सपली वात । तुम्ह जमाई छताँ मुझ मात । शतपट ते किसर उतपात ।।१५।। कहा कोलिक एसाच सुणावह जोए महिमा मुझ नपर। देवि सर्वन चक प्रमाणिवबरी नह परि पार्ट हॉषि॥३५८॥ ते कोलिकमन मोहर धरहजर वबरी रानर पुरहरा। सर र स्त्री विरहर मुझ थाइ । इसिर विमाखी कोलिक जाइ ||३५९ ।। से चिन्ता निजपर मॉहिबई20 । इसिर उपाय कर सही। गुरुडचडी रह पाकासि । क्यार बबरी जासिह नासि ॥१०॥ वासवदेववाहन तण गरूर विचारह भेद। प्रणमी प्रभु नहइम कहा वाच सुपर मुझ देत ।। ३६१ ॥ कोलिक मरण भङ्गीकरी करा तुम्ह नइलोय । पूजा नही कर पाधरी नही मानद वली कोय ॥ ३६२॥ कृष्ण काहि वेणा गहडि, जई संक्रमि खगराव। 126 कॉलिककावा वसई इम काज करा ॥३५॥ विष्णु गरुड यह संक्रमह । वबरी ना दल अपरिभमा । भागर परिष पुएबाँ तसताना ववरी जाबह घणां ।।१५॥ गगण थकी कोलिकतरा महिमवन्स० पिट राबमा मिला। राइ मन्धिदीर जव तेव । तव कोलिक [सि] पूडिट भेव ॥३१५॥ ए इसि कहाकिम तेइधुरि थी सपि वेषा इम कहि | शहरवा तपट गुण जॉषि । राब किसी[]न कीधी ताणि ॥ ३६६ ॥ राजा राशि करित पसाब। सह साखर परतावा राब। देस गाम भाप्या हितकरी। कोलिकि राजकन्या [इम] वरी ॥३६॥. 5. King Datta cannot escape the Fate Predicted to him by KalkacArya. [From Somasundarasari's commentary on Dharmadasa's Uvaesamana (gatha 105), contained in & MS. kindly supplied to me by the Jainâcârya Cri Vijaya Dharma Sari, Samvat 1667=A.D. 1511]. तुरुमिणी मगरी दत्त ब्राह्मण महन्त राज्य आपणहवास करी भागिलु जिवशदु राजा काबी भापणपद राव अधिष्ठि । धर्म नी बुद्धिई घणा याग बजिया। एक वार दत्त ना माउला विष्णुरूपी. . 12 रहसह. थाइ. किसलं. 15 वीजा. 16 लहसिह. पसाचड सुपई. 18 देव. 10 मांहि. जर. . कोर. कृष्णि कहा. . कराइ. 28 बेह. नाठा. 30 महिमावंत. कहलं. "हो. कहिन. अधिष्टिर.
SR No.032537
Book TitleIndian Antiquary Vol 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRichard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar
PublisherSwati Publications
Publication Year1984
Total Pages380
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size16 MB
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