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________________ ८४६ ] [ महामणि चिंतामणि फिर सोचते-सोचते एकदम स्थिर हो गये। बाद में आपको विवेक का प्रकाश हुआ और खयाल आया कि अहो ! यह तो मेरा भ्रम है, भगवान तो वीतराग हैं और वीतराग में कोइ स्नेह का संबंध नहीं है। धिक्कार है मेरे मोह को-यह बस मोह का माहात्म्य है। हे भगवान! आप तो वीतराग हैं! आप का कोई अपराध नहीं है। आपने अपने कर्तव्य को बजाया, केवल मैने ही मोहवश आपको उपालंभ दिया। क्षमा करियेगा। वास्तव में कोई किसी का नहीं है। जीव द्रव्य सब स्वतंत्र हैं। मैं | का नहीं कोई मेरा नहीं. पर फिर भी मोहवश अज्ञान इतना रहा होगा इस लिए मेरी ऐसी ऐसी भावनाएं हुईं। वास्तव में सब अनित्य है, जो कछ है वह सब अनित्य है और अपना स्वरूप नित्य है। अपनी आत्मा के अस्तित्व के और नेतृत्व के चिन्तन में आप स्थिर हो गए और श्रेणी लग गई और यावत् सबेरा हुआ तब गणधर गौतम को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। गणधर गौतम कितने लब्धिसंपन्न थे ? अतिमुक्तककुमार छः साल की अवस्था का था और भगवान भिक्षा के लिए गये थे गणधर गौतम। उसने सोचा और पूछा कि आप कहां रहते हैं ? आप क्या क्या काम करते हैं ? बाल्यभाव से सब जवाब दिया। क्या मैं आपके साथ चलूं ? चलो ! गये और वह होनहार था लड़का। इस लिए उसको पूर्वजन्म का संस्कार जागृत हो गया, दीक्षा ली और आठ साल की उम्र में ही उसको केवलज्ञान हो गया। वह केवलज्ञान किस तरह हुआ ? छोटे बच्चे के रूप में शरीर था तो यह दीर्घ शंका त्याग के हेतु सब गये हैं। ऐसे आप भी गए हैं और बच्चे वर्षा-काल में एकत्र समूह है, पानी का थोडा सा खड्ड है उस में कोई कागज़ की नैया बना करके तिराकर के खेलते हैं। आप भी उसके साथ खेलने लग गए हैं। बाद में बड़े साधु-मंडली आई। उन्होंने कहा कि यह काम अपने से नहीं होता, इस में पाप लगता है। कहा कि पाप लगता है? मिच्छामि दुक्कडम्। फिर इर्यापथिका प्रतिक्रमण करते करते आपको श्रेणी लग गई और केवलज्ञान हो गया। आठ वर्ष की उम्र में केवलज्ञान हो गया। ऐसे कईयों को आपने तारा। जिस वक्त भगवान का शरीर छूटने वाला था, उस वक्त इन्द्र महाराज भी उपस्थित हुए हैं और भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान! आप ऐसे अवसर पर शरीर छोड़ रहे हैं जिस वक्त भस्म राशि जो ८८ ग्रह जैन गणना के अनुसार बताये जाते हैं उनमें से तीसरा ग्रह है भस्म ग्रह, वह आपकी जन्म राशि में आता है। तो ऐसी स्थिति में शरीर छोडेगें तो आप का भविष्य में जो चतुर्विध संघ दो हज़ार साल तक तितर-बितर हो जायगा। मूल मार्ग से भ्रष्ट हो जायगा और असली आत्म-साधना नहीं पा सकेगा। छिन्न-भिन्न हो जायेगी स्थिति। चालणी की तरह संघ हो जायेगा। यह दो हजार साल और उसका दशांक पांच सौ, कुल २५०० वर्ष यानी ढाई हज़ार। अभी कछ कम है यह समय पूर्ण होने जा रहा है और ऐसा ही हम देख रहे हैं। यह भावना थी कि दो घड़ी और आयु बढा दें और बाद में शरीर छोड़िये। तब भगवान की दिव्य ध्वनि द्वारा जवाब मिला कि हे इन्द्र ! ऐसा नहीं हो सकता। उस में फेरफार नहीं हो सकता। * **
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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