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________________ श्री गुरु गौतमस्वामी 3 [ ८२३ गौतम गणधर-हमारे लब्धिसम्राट - PES -श्री विमलकुमारजी चौरडिया जीव कर्माधीन है। या कर्म जीव के अधीन है, यह प्रश्न विचारणीय है। पुरुषार्थहीन जीव अपने को कर्मों के अधीन मानकर ८४ लाख योनियों में भ्रमण करता रहता है। पुरुषार्थ सिद्ध जीव अपने पुरुषार्थ से शुभ कर्म करके अपने को शुभ से शुद्ध स्थिति में लाकर भवबन्धन से मुक्त हो कर मोक्ष पा लेता है। जो भी जीव मुक्त हुए हैं वे अपने पुरुषार्थ से हुए हैं। महान ज रुषार्थमुक्त रहते हैं। शेष धीन रहकर कर्मों से मुक्त नहीं हो पाते।। तीर्थंकरों के, सिद्धों के, गणधरों के जीवों के जीवन पुरुषार्थ के श्रेष्ठतम आदर्श है। प्रातःस्मरणीय अनन्तलब्धिभंडार गौतमस्वामी के जीव ने उनक पूर्व के भवों में व गौतमस्वामी के भव में एसा पुरुषार्थ किया कि उनके जीवनकाल में ही चारों घातीकर्मों के आवरण इतने क्षीण कर दिये कि केवल भगवान महावीर के प्रति प्रशस्त मोह का सूक्ष्म पर्दा उनको केवलज्ञान प्राप्त करने में भगवान महावीर के निर्वाण तक बाधक बना रहा जब कि उनके द्वारा दीक्षित हज़ारों श्रमण केवलज्ञानी हो गये। . गौतमस्वामी को अपने पुरुषार्थ से कई सिद्धियां, लुब्धियां प्रकट हो गई थीं। लघिमा सिद्धि के प्रभाव से वे अपने शरीर को इतना हल्का कर सकते थे। सूर्यकिरण का आलम्बन लेकर अष्टपद पर्वत पर जा कर देवाधिदेव के दर्शन कर सके थे। एक पात्र से १५०० तपस्वियों को खीर का पारणा करा सके थे। संभवतः कुछ महानुभाव इस कथन को भक्तों के द्वारा गौतमस्वामी की महिमा बढ़ाने वाली अतिशयोक्ति कहकर अस्वीकार करना चाहें। उनकी जानकारी के लिये निवेदन है कि आज भी कई सक्त महात्माओं के द्वारा अपनी लब्धि के द्वारा ऐसे चकित करने वाले कार्य किये जा रहे हैं। सुथरी में धृत कल्लोल पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा के समय पर्याप्त सामग्री की व्यवस्था नहीं होने पर भी ११ दिन तक लगभग ग्यारह हजार व्यक्तियों ने प्रतिदिन भोजन किया। लेखक का अनुभव है कि अंग्गलिया ग्राम में श्रीकरण पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा के अवसर पर समस्त ग्रामवासी लगभग १२०० तथा बाहर के पधारे श्रीसंघ के ३००, इस प्रकार १५०० व्यक्तियों के भोजन के अनुभव पर १८०० व्यक्तियों के भोजन की व्यवस्था की गई थी। भोजन के समय उपरोक्त अपेक्षित व्यक्तियों के अतिरिक्त आसपास लगने वाले ग्रामों से भी अनपेक्षित ग्रामवासी भी भोजन करने पधारे। व्यवस्थापकों के चहेरे पर चिन्ता की रेखाएँ उभरने लगीं। खरतरगच्छ के पूज्य श्री जयानन्दजी म. सा. को स्थिति से अवगत कराया गया। पूज्य महाराज साहब सामग्री वाले स्थान पर आये। सारी सामग्री को ढंककर भोजन कराने का निर्देश दे दिया। सब को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि १८०० व्यक्तियों के लिये बनाये भोजन में ३००० से अधिक व्यक्ति तृप्त होकर गये तथा लगभग ३०० व्यक्ति और भोजन कर ले इतनी सामग्री बची। ऐसे
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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