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________________ ८२२ ] [ महामणि चिंतामणि अकेला ही संसारसागर में परिभ्रमण कर रहा है, कौन वे और कौन मैं ? अब मुझे समस्त बंधनों को काटकर बन्धनमुक्त, स्वतंत्र, सार्वभौम स्वाधीन हो जाना चाहिए। अब ढील कैसी ? हे आत्मन् ! जागृत हो जा। शुद्ध, बुद्ध और निर्द्वन्द हो जा।" गौतमस्वामी क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ हुए। शुक्लध्यान के मध्य में जब वे प्रवर्तमान हुए तभी उन्हें अनुत्तर केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुए। वे त्रिकाल-त्रिलोक के समस्त पर्यायों को जानने-देखने लगे। वे अब जिन भगवान, अहँत, ज्ञायक, केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी हो गये। यह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का पावन दिवस था। इसी दिन से नवीन संवत्सर शुरू होता है। भक्तगण इसी प्रातःकाल को परम भक्ति से गुरु गौतम को स्मरण करते हैं, जाप करते हैं, माला फेरते हैं। गौतम गणधर ने १२ वर्ष तक केवली पर्याय में रहकर मोक्षगमन किया। वे सिद्ध हुए, पारंगत हुए, अजर, अमर व असंग हुए। वे उन्मुक्त कर्म-कवच हुए। जन्म-जरा-मरण से मुक्त, अव्याबाध एवं शाधत सुख के भोक्ता हुए। गौतमस्वामी को केवलज्ञान की उत्पत्ति हो जाने से भगवान महावीर के पाट पर गणधर सुधर्मास्वामी को बैठाकर, अपने शिष्यों सहित पूरे संघ को उन्होंने सुधर्मास्वामी को सौंप दिया, उनके स्वाधीन किया। अतः भगवान महावीर के पट्टधर सुधर्मास्वामी हुए।
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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