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________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [ ८०६ अध्ययन गणधरवाद में इससे सम्बंधित प्रश्नोत्तर तर्क-वितर्क का मूल आधार उनकी जिज्ञासु वृत्ति ही रही है। इसी जिज्ञासा ने उन्हें श्रमण स्वरूप प्रदान किया था। महावीर के प्रति उनके हृदय की अगाध श्रद्धा और भक्ति के साथ यह जिज्ञासा भी जुड़ गई। मानों उन्होंने त्रिवेणी का रूप धारण कर लिया हो। उनकी यह जिज्ञासा वृत्ति ही ज्ञानराशि के सृजन की भव्य कहानी का 'अथ' और 'इति' बनी है। उपलब्धि केवल्यज्ञान की :-- दीक्षा से ले कर आजीवन कठोर तपश्चरण स्वाध्याय एवं विशुद्ध ध्यान से उनकी आत्मिक शक्तियों का चरम विकास हुआ। कार्तिक कृष्णा अमावास्या की रात्रि में महावीर के निर्वाण की मंगल घड़ियाँ लेकर उपस्थित हुई। गणधर गौतम को केवल्यज्ञान-परमज्ञान की प्राप्ति भी इन्हीं मंगल घड़ियों में हुई। प्रभु महावीर के प्रति समभाव का मृदु तंतु गाढ़ बन्धन बनकर उनके ज्ञानपुष्प के पूर्ण विकास को बांधे हुए था। ज्यों ही गणधर गौतम को यह अनुभव हुआ कि महावीर तो वीतराग थे, वीतराग प्रभु में किसी के प्रति राग नहीं होता। फिर भी मैं एकपक्षीय राग में अंधा बना रहा- मेरी केवल्यज्ञान की ज्योति प्रकट नहीं हो सकी। अब मैं सदा के लिये इसे तिलांजली देता हूँ। इसके साथ ही हृदय की गहराईयों में वे अपने एकाकी शुद्ध आत्म-स्वरूप की अनुभूति करने लगे। इसी शुद्ध स्वरूप का चिंतन करते हुए उन्होंने एक ही झटके में रागबन्धन को तोड़ दिया। अब तो केवलज्ञान की परम पावन ज्योति उनके जीवन में जगमगाने लगी और वे परमज्ञानी बन गये। परिनिर्वाण या लक्ष्य की सिद्धि : केवल्यज्ञान की उपलब्धि के बाद १२ वर्ष तक विचरण करते हुए उन्होंने जिनमार्ग की प्रभावना की। अन्त में वीरनिर्वाण के १२ वर्ष की समाप्ति में अपना अवसानकाल सन्निकट जानकर उन्होंने राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में आमरण अनशन स्वीकार किया। एक मास की अनशन की आराधना के पश्चात् समाधिपूर्वक वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बने।। प्रभु महावीर के जीवनकाल में भी गणधर गौतम वीरमय बनकर ही रहे और निर्वाण | के बाद भी वीरमय बन गये। वीर में और उन में कोई भेद विद्यमान नहीं रहा। श्रमण भगवान महावीर के साथ गणधर गौतम का नाम भी चिरस्मरणीय बना रहेगा। (शाश्वतधर्म-गणधर गौतमस्वामी विशेषांकमें से साभार) * * Dal 00000000000000000000000000000000000000 women 00000000000000000000 Poon Poooooo ooooooooozܘܝ ૧૦૨
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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