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________________ ८०८ ] [ महामणि चिंतामणि सम्बन्ध में एक अन्य उल्लेख प्राप्त होता है। इसके अनुसार इन्द्रभूति के दीक्षाकाल में उनके पिता शाण्डिल्य विद्यमान थे। जब देवपति शक्रेन्द्र के साथ इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के समवसरण की ओर प्रस्थान करने लगे, उनके दोनों भाई भी उनके साथ हो लिए। यह देखकर ब्राह्मण शाण्डिल्य चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे- 'हाय रे दुर्दैव! मेरा तो सर्वस्व लुट गया। मेरे इन पुत्रों के जन्म के समय नैमित्तिक ने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि - " तुम्हारे ये पुत्र जैन धर्म की महंती प्रभावना करके परम सौख्यदायी मार्ग को प्रशस्त करने वाले होंगे। आज उस ज्योतिषी की बात सत्य होने जा रही है। हाय ! यह मायावी महावीर यहाँ कहाँ से आ गया है । " एक बाधक बात अवश्य है कि यहाँ इन्द्रभूति गौतम के पिता का नाम शाण्डिल्य बताया है, जब कि अन्यत्र उनका वसुभूति नाम का ही उल्लेख मिलता है। यह विचारणीय है। कुछ भी हो, इन्द्रभूति गौतम उस दार्शनिक संघर्ष एवं श्रमण-ब्राह्मण संस्कृतियों के संघर्ष - युग में एक महान सेतुबंध बनकर उपस्थित होते है । संयमसाधना : प्रभु महावीर के मुख श्रमणदीक्षा स्वीकार कर इन्द्रभूति आजीवन घोर तपोव्रत भी स्वीकार करते थे। उपासक दशांगसूत्र के उल्लेख के अनुसार वे जीवनकाल पर्यंत बेले बेले (दो दो उपवास) की तपस्या करते रहे। उनका जीवन अप्रमत्त था । स्वाध्याय - ध्यान के नियमित कार्यक्रमों में उनका जीवन बीत रहा था। अपने गुरु भगवान महावीर में ही वे लय थे। महावीर में एकाकार बनकर जैसे वे महावीरमय ही बन गये थे। विनय की तो प्रतिमूर्ति ही बने रहे। प्रभु महावीर की आज्ञाओं का पालन ही उनके जीवन का सर्वस्व था । महाज्ञानी होने पर भी उन्हें अभिमान तो छू तक भी नहीं गया था । साधुचर्या का पूरा पालन करते हुए उन्होंने तीस वर्ष का लम्बा समय छद्मस्थ पर्याय में पूर्ण किया। जिज्ञासु वृत्ति के कारण उन्होंने हजारों ही नहीं, लाखों प्रश्न भगवान महावीर के समक्ष प्रस्तुत किये, और समाधान प्राप्त किये। इस कारण भी आगमों में यत्र-तत्र सर्वत्र गौतम नाम की पुनः पुनः आवृत्ति प्राप्त होती है । ज्ञानाराधना : श्रमणदीक्षा से पूर्व इन्द्रभूति ने वेद-वेदांग और उपांग को मिलाकर सम्पूर्ण १४ विद्याओं का गहन अध्ययन किया था । कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका के अनुसार गौतम ने स्वयं कहा था, " मैंने तीनों जगत के हज़ारों विद्वानों को वाद में परास्त किया है।" श्रमणपर्याय स्वीकार करने के बाद से भगवान महावीर के सांनिध्य में उन्हों ने ज्ञानाआराधना ही नहीं की । अन्धों के लिए ज्ञान साधना के ठोस आधार के रूप में साहित्य का निर्माण कर वे उसके निर्माता भी बने ! जिज्ञासा -- ज्ञान भवन की बुनियाद : गणधर गौतम के विशाल व्यक्तित्व का आरंभ ही जिज्ञासा से हुआ । जिज्ञासा ने ही उन्हें यज्ञमण्डप से महावीर के समवसरण की ओर अग्रसर किया। भगवान महावीर के साथ उनकी चर्चा, जीव तत्त्व की नित्यता के बारे में हुई । आचार्य जिनभद्र रचित विशेषावश्यक भाष्य के
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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