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________________ ८०० ] [ महामणि चिंतामणि aowowom womenwoooooooooooooo - __ घोर ब्रह्मचारी, निर्ममत्व शरीरी, विपुल तेजुलेश्या (तेजस शक्तियुक्त) थे। चौदह पूर्व के पाठी, द्वादशांग गणिपीटक के धारक, चार ज्ञान के स्वामी-सर्व प्रकार के अक्षरों से क्या अर्थ होता है, पूर्ण रूपेण उसके ज्ञाता थे। सर्व भाषा विज्ञ-सर्वज्ञ नहीं थे, परन्त सर्वज्ञ जैसे ही थे। सर्वज्ञ प्रभु की तरह यथार्थ प्ररूपण करते थे एवं ध्यानयोग में रमण करने वाले थे। इस प्रकार संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए प्रभु की पर्युपासना में दतचित्त थे।" . शुद्ध संयमसाधना से एवं दुष्कर तपाराधना के प्रभाव से गौतम गणधर का आंतरिक जीवन उत्तरोत्तर निर्मल होता गया। कर्म और कषायों (क्रोध-मान माया, लोभ) के निबिड़तम आवरण आत्मप्रदेशों जैसे जैसे दूर हुए वैसे आत्मस्वरूप में निखराव की रश्मियाँ तेजस्वी हो उठीं। वस्तुतः सहज भाव से रत महान साधक गौतम गणधर का संयमी धरातल इतना शुद्ध-विशुद्ध हो चला कि सहज रूप में उन्हें अनेक लब्धियाँ प्राप्त हइ। अंगुष्ठे चामृतं यस्य सर्वगुणोदधिश्च यः। भंण्डारः सर्वलब्धिनां, वंदे तं गौतमं प्रभुम् ।। ऐसे गणधर गौतम दिव्य ज्योति के धारक, दिव्य रूप-लावण्य एवं ऋद्धि, दिव्य लेश्यायुक्त एवं दिव्य प्रभाव से संपन्न थे। बहुश्रुत, मुनियों, आचार्यो, उपाध्यायों, मुनियों, महासतियों, एवं हजारों हजारों विज्ञ आत्माओं ने संस्कृत-प्राकृत-हिंदी एवं प्रांतीय भाषाओं में स्तोत्र-स्तुतियाँ, गीतिकाएँ रचकर भगवान गौतम के गुणकीर्तन किये हैं, गाए हैं। हजारों भजन-स्तवन गणधर गौतमप्रभु की स्तुति के रूप में एवं लिखे गये हैं। आज जैन समाज के सभी प्रमुख संप्रदायों में अपने आराध्य गौतम गणधर का एक सम्मान और सत्कार है। दीपावली महापर्व के मंगल दिनों में प्रत्येक जैन व्यापारी बंधु अपने अभिनव बही खातों में सर्व प्रथम श्री गौतमस्वामी लब्धि भवतु इस प्रकार शुभ वाक्य लिखकर मंगल मानते हैं। प्रभु महावीर के निर्वाण होते ही गणधर गौतम को 'कैवल्य' प्राप्त हुआ। उन दिनों गौतमस्वामी की दीक्षा पर्याय लगभग ३० वर्ष की थी। तीस वर्ष के संयमी पर्याय में केवली बने। द्वादश वर्ष पर्यंत केवली में रहे। कुल आयुष्य ६२ वर्ष का पूरा करके निर्वाणपद को प्राप्त हुए। बुद्धस्स विसम्म भासियं, सुकहिय मट्ठ पओव सोहियं । रागं दोषं च पिंदिया, सिद्धिगइ गए गोयमे तिबेमि ।। सर्वज्ञ महावीर प्रभु का फरमाया हुआ अर्थ और पदोंसे सुशोभित प्रवचन सुनकर श्री गौतमस्वामी रागद्वेष का नाश करके सिद्ध गति को प्राप्त हुए। भगवान महावीर के १४००० मुनि-शिष्यों में गणधर गौतम की सहज विनम्रता-सरलता एवं जिज्ञासा इतनी गरिमापूर्ण है कि इस समय उस समकक्षता कोई नहीं पा सका। हम सभी सर्वात् भावेन श्रद्धापूर्वक नत हैं और आगामी पीढ़ी नत रहेगी। HAMARImmummmmmmmm
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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