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________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [ ७६७ 0000000000000000 Toggggggggggggggggoooooooooooooooooooooooooooooooooooo o । चार ज्ञान के स्वामी : गणधर श्री गौतमस्वामी -प्रवर्तक श्री रमेश मुनिजी अत्थं भासई अरहा, सुत्तं गथंति गणधर निउणा, सासण हिय ठाए, तओ सुत्तं पवत्तइ॥ जिन्होंने धर्मशासन के परम हितार्थ भगवान महावीर के धर्मोपदेशों को सूत्र के रूपमें गुंफित और ग्रंथित एवं जिनवाणी सुरक्षा का एक महान श्लाघनीय कार्य पूरा किया है। जिनके लिए अगाध आगम वाङ्मय एवं अन्य साहित्यकोश बता रहे हैं, अपने आराध्य भगवान महावीर के चतुर्विध संघ के प्रति स्वयं सोल्लास समर्पित तो रहे ही, साथ ही साथ गणिपिटिक द्वादशांगी वाणी का विशद संकलन प्रस्तुत करके प्राकृत भाषा-ज्ञान भण्डार को पूर्ण किया है। जिनकी यथार्थ श्रद्धा-निष्ठा एवं भक्ति ने क्या नहीं किया ? अर्थात् सब कुछ किया और दिया......। वह आगम ज्ञानकोश आज जन जन के लिए प्रेरणापुंज के रूप में धार्मिक, नैतिक और सामाजिक जीवननिर्वाह का सफल नेतृत्व प्रस्तुत कर रहा है। यह निर्विवाद सत्य है कि सदियों से उस आत्मिक ज्ञानालोक से अध्यात्मजगतका धरातल तो प्रभावित रहा ही है, परन्तु भौतिक विज्ञान-जगत भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। जितने भी आविष्कार-अनुसंधान हुए और हो रहे हैं, मेरी दृष्टि में अंतरंग किंवा बहिरंग विकास के प्रकार आगमिक ज्ञान से उद्भूत हुए हैं। प्राणी मात्र के महोपकारी साधक शिरोमणि, तरण तारण जहाज, अध्यात्मयोगी भगवान महावीर के प्रमुख अंतेवासी, श्रमण संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति को जोड़ने वाले संसुसरश इन्द्रभूतिजी को कैसे भूल पायेंगे। कहा है- 'तनय वसुमतेश्च पृथिव्यां अंग जातकम्'-अर्थात् बिहार प्रांत के अन्तर्गत गौवर ग्राम के निवासी विप्रवर्य वसुभूति के पुत्र और माता पृथ्वी के अंगजात गौतम गोत्रीय 'इन्द्रभूति' जो मीमांसक दर्शन के कट्टर उपासक, यज्ञयाग, छुआ-छूत आदि बाह्य क्रियाकाण्ड के पक्के अनुयायी, अनुगामी, समर्थक एवं प्रबल प्रचारक थे, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद के खास मर्मज्ञ तथा निर्युक्त भाष्य-टीका, धर्म-दर्शन, नीतिदर्शन, इतिहास, भूगोल-खगोल, कोष, काव्य, व्याकरण एवं तंत्र मंत्र आदि विविध विद्याओं के पारगामी पाठी थे। उस काल, उस समय में अपनी जाति के आप एक जानेमाने ख्यातिप्राप्त पंडित थे, जिनके पांडित्य की धाक पावापुरी, राजगृही एवं नालंदा के उस रमणीय रंगमंच पर्यंत तो क्या सुदूर देशों के हज़ारों नागरिकों के कर्णकुहरों तक परिव्याप्त थी। इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति-ये तीन सहोदर भाई थे, जिनमें इन्द्रभूति जयेष्ठ भाई थे। बालब्रह्मचारी, वैदिक संस्कृति के धुरंधर विद्वान एवं वादकोविद थे।
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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