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________________ ७६८ ] [ महामयिंतामशि 000000 0 00000000000000woooooooom 1000000000000000000000 ||७०॥ ॥७२॥ इम केवलसिरि सयंवर वरियउ, सहस पचासा मुणि परिवरियउ । तिहुयणभवण उज्झोयकरो । मंगलदीवउ भणि मुणिराओ आराहीजइ भविय जणि । सहस पंचासा तव विक्खाउ सुर-तरु-धेणु भणी जगि सारो, जणमणवंछिय सुहदातारो । तेय जि जिनिउ अवयरिय (?) । जसु मुणितणइ तियक्खर नामी, न्योयी (? पावी ?)सु मणवंछिय दियए । गुणि गरुवउ गुरुगोयमु सामी ||७१॥ जाणे पंचपरमिट्टि तूठा, जाणे सात अंमिय–घण वूठा । जाणे नवनिधि करि चडिय ।। जाणे कोडिमहारस सीधउ, जइ उठंतहं प्रहसमए । गोयम नामु गहण छुड कीधउ गोयम केवलि महि विहरंतउ, जणमणसंसयतिम(मि)रं हरंतो (तउ) । तेयवंतु दिणि दिणि उदवं(य)तउ ।। कुग्रह कुमय विहंडणउ, भविय लोयपडिबोहकरो । सहसकिरण जिम जगि जयवंतउ जयवंतउ जिणसासणराजो, परम महोच्छव मंगलकाजो । पहिलउ वृद्धि वधावणउ ए । पढहिं गुणहिं जे गोयमरासो, अष्ट महासिद्धि नवह निधि । तहिं घरि निश्चल करहिं निवासो ||७४॥ चउदह सय पंचोत्तर वरिसे, थिरउरपुरि गरुवइ मण हरसे । रासु एहु गोयमतणउ । रयणसिंहरसूरिदिहिं कीयउ, पढत गुणंतहं भवियणहं । रिद्धि वृद्धि मंगल सुह दियउ इति श्री गौतमस्वामिरास समाप्तः ॥ 'गौतमरास'गत कठिन-शब्दकोश ॥७३॥ ||७५॥ शब्द अर्थ . माइबीउ सिरिवन्न मातृका-बीज-हींकार 'श्री' वर्ण जन्न यज्ञ पण पण सढतितिसय० पांच पांच साडा त्रण-त्रण सो०
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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