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________________ 337 जैन-विभूतियाँ सभापति चुने गए। आपने अनेक स्थानों पर जैन मन्दिर एवं धर्मशालाएँ बनाने के लिए अवदान दिये। सरकार ने उन्हें राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया। इस घराने के राय विशनचन्दजी प्रतिष्ठित जमींदार थे। उनके पुत्र विजयसिंह जी ओसवाल समाज ही नहीं समस्त जन-साधारण एवं ब्रिटिश सरकार के चहेते व्यक्तियों में से थे। उनका जन्म अजीमगंज में सन् 1881 में हुआ। सन् 1906 से 1921 तक लगातार वे अजीमगंज म्युनिसिपालिटी के चेयनमैन रहे। सन् 1908 में सरकार ने उन्हें 'राजा' के खिताब से सम्मानित किया। आपने शिक्षण संस्थाओं को लाखों रुपए दान दिए। बालूचर, पाली, जोधपुर आदि स्थानों पर आपने धर्मशालाओं एवं स्कूलों का निर्माण करवाया। सार्वजनिक कार्यों एवं संस्थाओं को आपका सहयोग हर समय उपलब्ध रहता था। सन् 1911 में बम्बई एवं सन् 1929 में सूरत में आयोजित अखिल भारतीय जैन परिषद् के आप सभापति निर्वाचित हुए। सन् 1919 में तूफान पीड़ितों की भरपूर सहायता करने के उपलक्ष में सरकार ने आपको सनद देकर सम्मानित किया। इनके पुत्र श्री इन्द्रचन्द अंग्रेजी भाषा में पारंगत हो सन् 1889 में विलायत गए। इस कारण उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया गया। देशी-विलायती विवाद से तात्कालीन ओसवाल समाज को बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ी। आप आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी के मान्य सदस्य थे। सम्मेद शिखर तीर्थ के विवाद में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदायों की पटना में हुई कॉन्फ्रेंस के आप प्रेसिडेंट निर्वाचित हुए थे। इम्पीरियल लीग, कलकत्ता लेंड होल्डर्स (जमींदार) एसोशियेसन, भरत जैन महामण्डल आदि अनेक संस्थाओं के आप सदस्य थे। सन् 1929 में लार्ड ईरविन द्वारा काउन्सिल ऑफ स्टेट के सदस्य नामजद होने वाले वे प्रथम ओसवाल श्रेष्ठि थे। सन् 1933 में आपका 52 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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