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________________ [ 63 ] क्योंकि साँड किसी के अधीन नहीं रहता । बैल शुभ का भी प्रतीक है। आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मिक सुख-शान्ति को योग कहते हैं। जैसे अरहन्त या सिद्ध के अनन्त सुख क्षायिक भोग पाया जाता है। जैनों के वर्तमानकालीन तृतीय तीर्थकर संभवनाथ भगवान हैं। उनका लांछन घोड़ा है। घोड़ा तीव्र गमन का प्रतीक है। गमन अर्थात आगे बढ़ता, उन्नति करना, उत्थान करना, उत्क्रान्ति करना आदि है। जैनों के अन्तिम तीर्थंकर ऐतिहासिक प्रसिद्ध बुद्ध के समकालीन महावीर भगवान हैं उनके चिह्न सिंह हैं। सिंह शौर्य, वीर्य, साहस, धर्म पराक्रम का प्रतीक है। सम्पूर्ण तीर्थंकर समवसरण में जिस आसन पर बैठते हैं उस आसन को चार सिंह की मूर्ति धारण करते हैं । सम्पूर्ण तीर्थंकर के सिंहासन का प्रतीक ऊपर के चार सिंह हैं। जब तक धर्म चक्र (धर्मसमूह) चलता रहता है तब तक जन-गण-मन में, देशदेश में, समाज राष्ट्र में व्यवस्था ठीक रूप से बनी रहती है तथा सुख शान्ति रहती है धर्म के साथ-साथ साहस, निष्ठा, धैर्य, पराक्रम से जब आगे बढ़ते हैं तब अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। (13) चरण के नीचे कमलों का रचनादि होना जब तीर्थंकर भगवान जन-जन को पवित्र करने के लिए विश्व को सत्य अहिंसा प्रेम, मैत्री, समता का दिव्य अमर संदेश देने के लिए मंगल विहार करते हैं तब भक्ति-वशतः देवलोग भगवान के पावन चरण कमल के नीचे स्वर्ण कमल की रचना करते हैं। उन्निद्रहेमनवपंकज पुञ्जकांति पर्युल्ल सन्नखमयूख शिखाभिरामो पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥36॥ (भक्तामरस्त्रोत हे, जगदोद्धारक विश्व बन्धु तीर्थंकर भगवान ! धर्मोपदेश देने के लिए जब आप मंगल विहार करते हैं तब आपके मंगलमय चरणकमल के नीचे देवगण विकसित, नवीन, प्रकाशमय, सुन्दर, मनोहरी सुवर्ण कमलों की रचना करते हैं। मकरन्दरजोवर्षि प्रत्यग्रोदभिन्न केसरम् विचित्र रत्न निर्माण कणिकं विलसद्दलम् ॥272॥ आ० पृ० पर्व 25-पृ०633 भगवच्चरणन्यास प्रदेशेऽधिनमः स्थलम् । मृदुस्पर्शमुदारधि पङ्कजं हैममुद्वभौ ॥2730 जो मकरन्द और पराग की वर्षा कर रहा है, जिसमें नवीन केसर उत्पन्न हुई है, जिसकी कणिका अनेक प्रकार के रत्नों से बनी हुई है, जिससे दल अत्यन्त सुशोभित हो रहे हैं, जिसका स्पर्श कोमल है और जो उत्कृष्ट शोभा से सहित है ऐसा स्वर्णमय कमलों का समूह आकाश तल में भगवान के चरण रखने की जगह में सुशोभित हो रहा था।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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