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________________ [ 49 ] यद्यपि वह दिव्य ध्वनि एक प्रकार की थी तथापि भगवान के महात्म्य से समस्त मनुष्यों की भाषाओं और अनेक कुभाषाओं को अपने अन्तर्भूत कर रही थी अर्थात् सर्वभाषा रूप परिणमन कर रही थी और लोगों का अज्ञान दूर कर उन्हें तत्त्वों का बोध करा रही थी । एक तयोsपि तथैव जलौघश्चित्ररसौ भवति द्रुमभेदात् । पात्र विशेष वशाच्च तथायं सर्व विदो ध्वनिराप बहुत्वम् ॥71u जिस प्रकार एक ही प्रकार का जल का प्रवाह वृक्षों के भेद से अनेक रसहो जाता है उसी प्रकार सर्वज्ञ देव की वह दिव्यध्वनि भी पात्रों के भेद से अनेक प्रकार की हो जाती है । एक तयोsपि यथा स्फटिकाश्मा यद्यदुपाहितमस्य विभासम् । स्वच्छतया स्वयमप्यनुधत्ते विश्व बुधोऽपि तथा ध्वनिरुच्चैः ॥ 72 | अथवा जिस प्रकार स्फटिक मणि एक ही प्रकार का होता है तथापि उसके पास जो-जो रंगदार पदार्थ रख दिये जाते हैं वह अपनी स्वच्छता से अपने आप उन-उन पदार्थों के रंगों को धारण कर लेता है उसी प्रकार सर्वज्ञ भगवान की उत्कृष्ट दिव्य ध्वनि भी यद्यपि एक प्रकार की होती है तथापि श्रोताओं के भेद से वह अनेक रूप धारण कर लेती है । जिस प्रकार जल वृष्टि के समय में जल का रस, गन्ध, वर्ण एवं स्पर्श एक समान होते हुए भी विभिन्न मिट्टी के सम्पर्क से उसमें विभिन्न परिणमन होता है । लाल मिट्टी के सम्पर्क से जल लाल हो जाता है । काली मिट्टी के सम्पर्क से जल काला हो जाता है उसी प्रकार दिव्य ध्वनि रूपी जल विभिन्न भाषा-भाषी श्रोताओं कर्ण रूपी मिट्टी में प्रवेश होने के बाद उस उस भाषा रूप में परिणमन हो जाता है । वृष्टि जल का रस एक समान होते हुये भी विभिन्न वृक्ष में प्रवेश करके विभिन्न रस, रूप परिणमन कर लेता है जैसे - गन्ना के वृक्ष में प्रवेश करने से जल मधुर रस रूप होता है, नीम के वृक्ष में प्रवेश करके कड़वा ( तिक्त) रस रूप होता है । मिर्च के वृक्ष में प्रवेश करके चरपरा रूप होता है । इमली के वृक्ष में प्रवेश करके खट्टा रस रूप परिणमन कर लेता है इसी प्रकार दिव्य ध्वनि रूपी जल विभिन्न भाषा भाषियों के कर्ण ( गव्हर) में प्रवेश करके लेती हैं । विभिन्न रूप में परिणमन कर जो श्रोता संस्कृत जानता है उसके कर्ण गह्वर में (कर्ण पुट में) जाकर संस्कृत रूप में हिन्दी भाषी श्रोता को निमित्त पाकर हिन्दी भाषा रूप में, कन्नड़ भाषी श्रोता को निमित्त पाकर कन्नड भाषा रूप में, परिणमन कर लेती है । जिस प्रकार वर्तमान वैज्ञानिक युग में एक यन्त्र का आविष्कार हुआ है जिस यन्त्र के माध्यम से भाषा परिवर्तित हो जाती है। एक वक्ता इंग्लिश में भाषण कर रहा है और एक हिन्दी भाषी श्रोता उस वैज्ञानिक यन्त्र का प्रयोग करके इंग्लिश भाषण को परिवर्तित करके हिन्दी में सुन सकता है ।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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