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________________ [ 42 ] केवल ज्ञान कल्याणक (केवल बोध-लाभ) कठोर आत्म साधन से जब आत्म शुद्धि की वृद्धि होते-होते शुक्ल ध्यान निर्मल धूम्ररहित प्रखर अग्नि समान शुक्ल ध्यान अन्तरंग में प्रज्ज्वलित हो उठता है तब आत्म विशुद्धि के आध्यात्मिक सोपान स्वरूप क्षपक श्रेणी आरोहण करते-करते जब अन्तरङ्ग मलस्वरूप ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय एवं अन्तराय कर्मों को भस्म कर डालते हैं तब आत्म विशुद्धि एवं उत्थान गुण स्वरूप अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख एवं अनन्त वीर्य को प्राप्त करके पूर्ण तीर्थंकर अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं । इस अवस्था को जैनागम में तेरहवाँ गुण-स्थान संयोग केवली, जीवन-मुक्त, परमात्मा, अर्हत आदि नाम से अभिहित हुआ है। बौद्ध धर्म में इस अवस्था को बोधिसत्व, बुद्धत्व, अर्हत तीर्थंकर आदि कहते हैं । हिन्दू धर्म में जीवन-मुक्त, परमात्मा, सशरीर परमात्मा आदि नाम से पुकारते हैं। अर्हत अवस्था में पृथ्वी से 5000 धनुष अधर में रहना जादे केवलणाणे परमोरालं जिणाण सव्वाणं । गच्छदि उरि चावा पंचसहस्सांणि वसुहादो ॥ 705 ॥ (तिलोय पण्ण ति)-द्वि० भा० पृ० 201. केवल ज्ञान के उत्पन्न होने पर समस्त तीर्थंकरों का परमौदारिक शरीर पृथ्वी से 5000 धनुष प्रमाण पृथ्वी तल से ऊपर चला जाता है। यहाँ पर प्रश्न हो सकता है कि केवल ज्ञान के अनन्तर तीर्थंकर के शरीर 5000 धनुष (20,000 हाथ) ऊपर स्वयमेव किस कारण से चला जाता है ? संसारी जीव तीन प्रकार कर्म के समुदाय स्वरूप हैं (1) द्रव्य कर्म, (2) नोकर्म, (3) भावकर्म । ज्ञानावरणादि 8 कर्म द्रव्य कर्म हैं। (1) औदारिक, (2) वैक्रियक, (3) आहारक, (4) तैजस, (5) कार्माण शरीर नोकर्म स्वरूप हैं । राग, द्वेष, मोह, काम, क्रोधादि भाव कर्म हैं। कर्म पुद्गल से निर्मित है। पुद्गल में गुरुत्व नाम का एक गुण है अर्थात् पुद्गल में भारीपन है। कर्म पुनः दो भाग से विभाजित है-(1) पुण्य स्वरूप (2) पाप स्वरूप । पाप कर्म अशुद्ध विचारधारा से जीव के साथ संश्लेष बंध होने के कारण पाप कर्म वजनदार है। पुण्य कर्म विशुद्धि भाव से जीव के साथ संश्लेष बंध होने के कारण हल्का है। जब तीर्थंकर भगवान ध्यानाग्नि से पाप कर्म स्वरूप ज्ञानावरणादि स्वरूप 4 घाति कर्म को भस्म कर डालते हैं तब अनन्तानन्त परमाणु के पिण्ड स्वरूप पाप कर्म शरीर से पृथक हो जाते हैं। वजनदार अनन्तानन्त पाप परमाणुओं का शरीर से पृथक्करण होने के कारण तीर्थंकर का शरीर पूर्वापेक्षा कम वजनी हो जाता है जिससे शरीर पृथ्वी से 5000 धनुष स्वयमेव ऊपर उठ जाता है । जिस प्रकार हाइड्रोजन गैस से भरित बैलून को छोड़ देने से वह बैलून स्वयमेव
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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