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________________ [ 33 1 मान स्तम्भों की ऊँचाई 36 योजन है । 1 भाग से सहित 6 योजन अर्थात् ( योजन) 6 1 योजन के उपरिम भाग में और 4 भाग रहित 6 योजन ( 6 - 1 == 23 ) अर्थात् पौने छह योजन नीचे के भाग में करण्ड नहीं है । सोधर्म कल्प में स्थित मान स्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरण भरत क्षेत्र सम्बन्धी तीर्थंकरों के लिये हैं । ऐशान कल्प में स्थित मानस्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरण एवं विदेह क्षेत्र सम्बन्धी तीर्थंकरों के लिये और माहेन्द्र कल्प में स्थित मान स्तम्भ पर स्थापित करण्डों के आभरण एवं विदेह क्षेत्र सम्बन्धी तीर्थंकरों के लिये हैं । ये सभी करण्ड देवों द्वारा स्थापित और पूजित हैं । इन मानस्तंभों की धाराओं का अन्तर मानस्तंभ की परिधि ( 3 x 4 = 12 कोस ) का बारहवाँ भाग • अर्थात् एक कोस का है । पासे उववादगिहं हरिस्स अडवास दीहरुदयजुदं । दुगरयण सयण मज्झं वराजिणगेहं बहुकूडं ॥523॥ मानस्तंभ के पार्श्व भाग में 8 योजन लम्बा, 8 योजन योजन उपपाद गृह है, जिसके मध्य भाग में रत्नमयी दो शय्या हैं ही बहुत कूटों (शिखरों) से सहित उत्कृष्ट जिन मंदिर हैं । इन्द्र रोज तीर्थंकर के लिये योग्य आभूषण पोशाक लाकर देता है । तीर्थंकर प्रत्येक दिन नवीन नवीन अलंकार एवं पोशाक धारण करते हैं । इन्द्र अभिषेक के उपरान्त अंतरंग में भक्तिवशतः अत्यन्त आह्लादित होकर तांडव नृत्य करता है । पुनः तीर्थंकर को ऐरावत हस्ती में विराजमान करके वापिस लाकर ससम्मान माता-पिता को समर्पण करते हैं । चौड़ा और 8 ही तथा जिसके पास तीर्थंकरों के गृहस्थ जीवन-यापन - तीर्थंकर अत्यन्त पुण्यशाली महापुरुष होने के कारण उनका जीवन-यापन अत्यन्त वैभवपूर्ण एवं सुखशान्तमय होता है । पूर्व संस्कार से प्रेरित होकर वर्तमान जीवन भी नीति, नियम, होता है । आदिपुराण में आचार्य जिनसेन स्वामी तीर्थंकर के निम्न प्रकार वर्णन किये हैं सदाचार एवं संयमपूर्ण संयमित जीवन के लिये स्वायुराद्यष्टवर्षेभ्यः सर्वेषां परतो भवेत् । उदिताष्टकषायाणां तीर्थेशां देशसंयमः ॥6-35॥ (आदिपुराण) सर्व तीर्थंकर अपनी आयु के आरम्भ के आठ वर्ष के आगे श्रावक योग्य देशसंयम धारण करते हैं क्योंकि उनके अनन्तानुबन्धी अप्रत्याख्यानवरण कषायों के अनुदय तथा प्रत्याख्यानवरण तथा संज्वलन कषाय उदयावस्था में रहते हैं । ततोऽस्य भोगवस्तूनां साकल्येपि जितात्मनः । वृत्तिनियमितका भूदसंख्येय गुण निर्जरा 116-36॥ (आदिपुराण)
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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