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________________ [ 26 ] हस्त्यश्वर भगन्धर्व नर्तकी पत्तयो वृषाः । इत्यमूनि सुरेन्द्राणां महानीकानि निर्ययुः ॥16॥ हाथी, घोड़े, रथ, गन्धर्व, नृत्य करने वाली, पियादे (पैदल सैनिक) और बैल इस प्रकार इन्द्र' की ये 7 बड़ी-बड़ी सेनाएँ निकलीं। जन्म सन्देश प्रसार का वैज्ञानिक कारण यहाँ प्रश्न होना स्वाभाविक है कि भगवान का जन्म तो भू-पृष्ट पर हुआ और स्वर्ग में इन्द्र का सिंहासन कम्पाय मान कैसे हुआ? हमें सूक्ष्म वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करने पर इसका समाधान स्पष्ट रूप से हो जाता है। जैनागम में वर्णन है कि 343 घन राजू प्रमाण इस विश्व में धर्म द्रव्य (ईथर) पूर्ण रूप से व्याप्त हैं । धर्म द्रव्य के माध्यम से जीव एवं पुद्गलों का गमनागमन होता है। पुद्गल दो प्रकार के हैं(1) अणु, (2) स्कंध ।। स्कन्ध अनेक प्रकार के होते हैं । एकाधिक परमाणु मिलने से स्कन्ध तैयार होता है। दो अणु से लेकर संख्यात, असंख्यात, अनंत, अनंतानंत परमाणु मिलकर विभिन्न प्रकार के स्कन्ध की संरचना करते हैं। सम्पूर्ण विश्व व्यापी स्कन्ध को महास्कन्ध कहते हैं। सूक्ष्म रूप से कहाँ-कहाँ पर एवं स्थूल रूप से कहाँ-कहाँ पर यह स्कन्ध विश्व में फैला हुआ है। जिस समय कोई एक निश्चित स्थान में परिस्पन्दन होता है, तब यह विश्व अखण्ड सर्व लोक व्यापी होने से एवं सम्पूर्ण लोक में धर्म द्रव्य (ईथर) व्याप्त होने से वह परिस्पन्दन शक्ति अनुसार फैलता हुआ सम्पूर्ण विश्व को परिस्पन्दित करके शक्ति अनुसार फैलता हुआ दूर तक व्याप्त होकर क्षीण हो जाता है । परन्तु कुछ विशिष्ट शक्तिशाली परिस्पन्दन क्रम से फैलता हुआ सम्पर्ण विश्व में व्याप्त हो जाता है एवं विश्व के कण-कण को आन्दोलित कर देता है। जिस प्रकार जलाशय में पत्थर फेंकने पर उस पत्थर के आघात से जलाशय का जल तरंगित हो जाता है और वे तरंगें फैलती हुई जलाशय के तट तक पहुंच जाती हैं। वे जल तरंगें तरंगित होते हुए जल को आलोड़ित कर देती हैं, उसके साथ-साथ जल में स्थित द्रव्यों को भी आलोडित कर देती हैं। (इस विषय का विशेष वर्णन आगे किया जायेगा। विशेष जिज्ञासु वहाँ से देखने का कष्ट करें। इस सिद्धान्त के अनुसार मारकोनी ने रेडियो का आविष्कार किया था और इस सिद्धान्तानुसार टी. वी. टेलीफोन, वायरलेस, रेडार आदि वैज्ञानिक यन्त्रों का आविष्कार हुआ । जैसे रेडियो सेंटर से गाना, भाषण आदि प्रसारित होकर दूर-दूर तक फैल जाता है एवं दूर में भी उस गानादि को रेडियो आदि के माध्यम से हम सुन सकते हैं । उसी प्रकार जब तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं, उस समय तीर्थंकर के शक्तिशाली पुण्य प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व सूक्ष्मशाली तरंगों से तरंगित हो जाता है। उन शक्तिशाली तरंगों से आलोड़ित होकर इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान होता है।
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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