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________________ [ 4 ] नियम को जानने के लिये प्रातः स्मरणीय पुण्यश्लोका ऋषभदेवादि तीर्थङ्कर, भरतादि चक्रवतियों का जीवन-चरित्र अध्ययन करना आवश्यक है। जैसे, भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम के समय में 'महात्मा गाँधी' कहने से 'भारत' तथा भारत कहने से 'महात्मा गाँधी' का ग्रहण देश-विदेश के लोग करते थे उसी प्रकार प्रत्येक युग की सभ्यता-संस्कृति परिस्थिति का अध्ययन उस कालीन महापुरुषों के जीवन-चरित्र के अध्ययन से प्राप्त होता है। हम इस प्रकरण में सर्वप्रथम उस महापुरुष का वर्णन करेंगे जिससे केवल भारतीय ही नहीं परन्तु पृथ्वी की समस्त आदि सभ्यता-संस्कृति, धर्म, कला, कौशल, ज्ञान, विज्ञान, विद्या, वाणिज्य, जीविकोपार्जनोपाय, राजनीति, समाजनीति आदि का उद्गम, प्रचार-प्रसार एवम् स्थापना हुई थी। इस युग के उपर्युक्त सम्पूर्ण सभ्यता आदि के सूत्रधार होने के कारण उनका नाम भी आदिनाथ, आदिब्रह्म, आदिपुरुष, युगादिपुरुष आदि तीर्थङ्कर, कुलकर, आदि धर्म प्रवर्तक आदि से अभिहित हुआ । वे थे भगवान् धर्म क्रान्तिकारी युग पुरुष ऋषभदेव । इस प्रकरण का द्वितीय चरित्र-नायक वह महापुरुष है जो कि आदि पुरुष के ज्येष्ठ, श्रेष्ठ पुत्र थे एवम् जिनके पुण्य प्रताप पुरुषार्थ, शौर्य, वीर्य, राजनीति, प्रजापालन आदि गुणों के कारण इस देश का ही नाम 'अजनाभि' देश से भारतवर्ष रूप में विख्यात हुआ । वे हैं स्वनाम धन्य ऋषभदेव के पुत्र, पुण्यभूमि भारतवर्ष के प्रथम प्रधान एक छत्राधिपति सम्राट भरत चक्रवर्ती । उपर्युक्त दोनों पुरुष, प्राग ऐतिहासिक एवम् प्राग वैदिक काल में हुए थे। क्योंकि ऋषभदेव का वर्णन वेदों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है और भरत चक्रवर्ती आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण प्रायः उनके समकालीन हैं । उपयुक्त सिद्धान्त से स्वतः सिद्ध हो जाता है कि ऋषभदेव द्वारा इस युग के आदि में प्रतिपादित प्रचारित जैन धर्म व जैन वेदों से भी प्राचीन हैं अथवा कम से कम वेदकालीन तो हैं ही । इससे और एक सिद्धान्त स्वतः सिद्ध होता है कि इस भूखण्ड का नाम शकुन्तला एवम् दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर नहीं हुआ है क्योंकि अनेक हिन्दू पुराण एवम् जैन पुराण में ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत हुआ, यह प्रतिपादन स्पष्ट है जोकि आगे स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। ऋषभदेव के पुत्र भरत इस युग के प्रथम चरण में होने के कारण एवम् शकुन्तला के पुत्र भरत पश्चात् काल में होने के कारण शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत नहीं हो सकता है। युगादि पुरुष धर्म तीर्थ प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव, उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत के अनन्तर अनेक महापुरुष हुए हैं जिनके कार्य-कलाप प्रायः उपर्युक्त दोनों महापुरुषों से बहुत कुछ साम्य रखते हैं इसलिये विस्तार के भय से उनका वर्णन यहाँ नहीं किया गया है। विशेष जिज्ञासु इतिहास संबंधी प्रामाणिक प्राचीन ग्रन्थ महापुराण
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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