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________________ [ 3 ] 'प्राचीन कवियों के आश्रय से इसका प्रसार हुआ है। इसलिये इसकी पुराणता प्राचीनता प्रसिद्ध ही है तथा इसकी महत्ता इसके माहात्म्य से ही प्रसिद्ध है इसलिये इसे महापुराण कहते हैं । ऐसा भी कितने ही विद्वान् महापुराण की निरुक्ति अर्थ करते हैं। महापुरुष संबन्धि महाभ्युदय शासनम् । महा पुराण मान्मात मत एतन्महर्षिभिः ॥23॥ यह पुराण महापुरुषों से सम्बन्ध रखने वाला हैं तथा महान् अभ्युदय-स्वर्ग मोक्षादि कल्याणों का कारण है इसलिये महर्षि लोग इसे महापुराण मानते हैं। ऋषि प्रणीतमार्ष स्यात् सूक्तं सूनतशासनात् । धर्मानुशासनाच्चेदं धर्मशास्त्रमिति स्मृतम् ॥24॥ इतिहास इतीष्टं तद् इति हासीदिति श्रुतेः। इतिवृत्तमथैतिह्ममान्मायं चामनन्ति तत् ॥25॥ यह ग्रन्थ ऋषि प्रणीत होने के कारण आर्ष सत्यार्थ का निरूपक होने से सूक्त तथा धर्म का प्ररूपक होने के कारण धर्मशास्त्र माना जाता है। 'इति इह आसीत्' यहाँ ऐसा हुआ—ऐसी अनेक कथाओं का इसमें निरूपण होने से ऋषिगण इसे 'इतिहास', 'इतिवृत्त' और 'ऐतिह्म' भी मानते हैं। पुराण मिति हा साख्यं यत्प्रोवाच गणाधिपः। तत्किलाहमधीर्वक्ष्ये - केवलं भक्तिचोदितः ॥26॥ जिस इतिहास नामक महापुराण का कथन स्वयं गणधरदेव ने किया है उसे मैं मात्र भक्ति से प्रेरित होकर कहूँगा क्योंकि मैं अल्प ज्ञानी हूँ। महापुराण संबन्धि महानायक गोचरम् । त्रिवर्गफल सन्दर्भ महाकाव्यं तदिष्यते ॥99॥ प्रथम पर्व आदि पुराण .. जो प्राचीन काल के इतिहास से सम्बन्ध रखने वाला हो, जिसमें तीर्थङ्कर चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के चरित्र का चित्रण किया गया हो तथा जो धर्म, अर्थ और काम के फल को दिखाने वाला हो उसे महाकाव्य कहते हैं। . .. केवल कुछ स्वार्थ पर सत्ता लोलुपी निसृश व्यक्तियों के द्वारा मानवीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म, धन-जन, जीवन को विध्वंस करने वाले युद्ध-विग्रह-कलह आक्रमण, अत्याचार, अनाचार का वर्णन यथार्थ से इतिहास नहीं है, यह तो इतिहास के लिए कलंक स्वरूप है । परन्तु महामानव की पवित्र उदात्त प्रेरणाप्रद पवित्र गाथा ही इतिहास है जिसके माध्यम से मानव को पवित्र शिक्षा एवम् दिशा बोध होता है। । जिस प्रकार ग्रीक की प्राचीन सभ्यता एवम् संस्कृति के अध्ययन के लिये वहां के महान् दार्शनिक नीतिवान् आदर्श 'सुकरात्', 'प्लेटो', 'अरस्तू' आदि का जीवन चरित्र अध्ययन करना चाहिये । उसी प्रकार प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति, नीति,
SR No.032481
Book TitleKranti Ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanak Nandi Upadhyay
PublisherVeena P Jain
Publication Year1990
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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