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________________ मार्गानुसारी के गुणों में पाँचवा गुण है - प्रसिद्ध देशाचार-पालन आर्यावर्त के शिष्ट पुरुषों द्वारा आचरित, मान्य एवं परम्परागत रूदि से चले आ रहे उन उन देशों के प्रसिद्ध आचारों का पालन करना मार्गानुसारिता का गुण है। प्रसिद्ध आचार-पालन के पीछे दो शक्तियाँ इन आचारों के पालन के पीछे दो महान् शक्तियाँ हैं। एक तो येआचार शिष्ट-जनों द्वारा सेवित होते हैं और दूसरी ये दीर्घकाल की रूढि से सुदृढ़ बने हुए होते हैं। इस कारण ही ये हमारे अत्यन्त हितकारी होते हैं। उत्तम आचारों का ही शिष्ट पुरुष आचरण करते हैं - यह स्पष्ट बात है। तदुपरान्त ये आचार उत्तम है, प्रजा के लिये हितकारी हों, तब ही लाखों वर्षों में हुए अनेक आक्रमणों के सामने ये अबाध रूपसे अपना अस्तित्व बनाए रखने में समर्थ हुए हैं। इस प्रकार ये प्रसिद्ध देशाचार हम सबके लिये अत्यन्त आदरणीय एवं सम्माननीय हो जाते परन्तु आजकल एक धुन सवार हुई है - कुछ नवीन करो, प्राचीन है उसे तोड़ डालो और ___ फिर चाहे नवीन आचार हमारा अहित, अकल्याण करने वाले हों तो भी उनको अपनाओ। नवीन कार्य करने के धुनी व्यक्ति प्राय: सस्ता यश अर्जित करने के लिये ही ऐसा करते हैं। 'old is gold' पुराना है वह सोना है, इस कहावत की वे जोरदार खिल्ली उड़ाते हैं। यह कहावत सदा एवं सर्वत्र आदरणीय ही हो, ऐसी बात नहीं है, परन्तु 'पुराना है वह सब व्यर्थ (निरर्थक) है' - यह विचारधारा भी सर्वत्र सम्माननीय नहीं है, यह हमें समझ लेना चाहिये। सुबुद्धि की दूरदर्शिता प्रस्तुत है एक सुन्दर दृष्टान्त - रामपुर नामक ग्राम में रामजी भाई की सरपंच के रूप में नियुक्ति हुई। सरपंच होने के पश्चात उन्हें नित्य कुछ न कुछ नवीन कार्य करने की धुन लगी रहती। चाहे उनके नवीन कार्य से लोगों को लाभ हो अथवा हानि यह सोचने की उनमें दूर-दर्शिता नहीं थी। परन्तु उनकी पुत्री सुबुद्धि सचमुच बुद्धिमान थी। यथा नाम तथा गुण के अनुसार उसमें बचपन से ही उत्तम बुद्धि थी। एक दिन रामजी भाई के परम मित्र पदमशी भाई उनके घर आये। उन्होंने सुबुद्धि को पूछा, "बेटी! तेरे पिताजी कहाँ गये हैं?" सुबुद्धि ने उत्तर दिया, "वे मूर्खता करने गये हैं।" सुबुद्धि का उत्तर सुनकर पदमशी भाई विचार में पड़ गये। उन्होंने उसे पूछा, "तू ऐसा क्यों कहती है? मैं कुछ समझा नहीं।" तब सुबुद्धि बोली, "बात यह है कि मेरे पिताजी गत वर्ष सरपंच बने हैं तब से उनके मन में गाँव में कुछ न कुछ नवीन कार्य कर बताने की धुन सवार रहती है। हमारे गाँव के बाहर वर्षों से एक
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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