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________________ पाप-भीरु बनने के लिये परलोक-दृष्टि प्राप्त करो यदि हम भी पाप-भीरु होना चाहते हो तो हमारी दृष्टि केवल इस लोक की और ही नहीं, परन्तु सतत परलोक की ओर रखनी पड़ेगी। जो व्यक्ति परलोक को मानते हैं, इतना ही नहीं जो निरन्तर परलोक में मेरा क्या होगा?' इस विचार को ही प्रधानता देते हैं, वे पाप-भीरु हुए बिना नहीं रहते। आजकल अधिकतर मनुष्यों की तो परलोक के प्रतिश्रद्धा ही नहीं है और जिन कुछ मनुष्यों को परलोक के प्रति श्रद्धा है, उनकी दृष्टि भी निरन्तर परलोक की ओर नहीं रहती। इस लोक के सुख का आकर्षण इतना प्रबल है कि अच्छे-अच्छे धर्मात्माओं को भी कुछ समय के लिये परलोक भुला देता है और उन्हें पापाचरण में प्रवृत्त कर देता है। परन्तु यदि जीवन में परलोक-दृष्टि को गूंथ ली जाये तो कदाचित् पाप करने पड़े तो भी उन्हें करते समय आत्मा काँप उठेगी। कदाचित् पापाचरण होता रहे तो भी यदि पाप के प्रति भय भी साथ ही रहेगा, तो एक धन्य क्षण ऐसा भी आ जायेगा, जब सदा के लिये पापाचरण छूट जायेगा। पाप के प्रति भय, पाप के प्रति धिक्कार, घृणा पापों को हटाने का सर्वोत्तम उपाय है। जर्मनों का अमोध शस्त्र-धिक्कार सन् 1914 ई. में जर्मनों को अंग्रेजों की शरण में जाने के लिये विवश होना पड़ा था। उस समय जर्मनों ने अंग्रेजों को कहा था कि, "आपने हमारे अत्रों, शस्त्रों, स्टीमरों आदि पर अधिकार कर लिया है, परन्तु आप यह स्मरण रखना कि एक दिन हम आप पर अवश्य ही विजयी होगे।" अंग्रेजो ने पूछा, "किस प्रकार?" तब उन्होंने उत्तर दिया, "हमारे पास अब भी एक शस्त्र सुरक्षित है, जिसे लाख प्रयत्न करके भी आप हमसे छीन नहीं सकेंगे। उस भयंकर शस्त्र को ज्यों ज्यों आप अपने अधिकार में करने का प्रयास करोगे, त्यों त्यों वह शस्त्र आपके हाथ में न आकर उल्टा अधिकाधिक तीक्ष्ण होता जायेगा। तब कौतुहलवश अंग्रेजों ने पूछा, "आपके उस शस्त्र का नाम क्या है, यह तो बताओ।" जर्मनों ने उत्तर दिया, "उस शस्त्र का नाम है, आपके प्रति हमारी धिक्कार भावना। जब तक हमारी धिक्कार भावना आपके प्रति है तब तक हम जीवित हैं। हम पुन: उठ बैठेंगे, सज्ज होंगे और आपको अवश्य पराजित करके ही दम लेंगे।" पराजित जर्मन लोगों का अमर देश-प्रेम देख कर अंग्रेज नत-मस्तक हो गये। बस, इसी बात को आध्यात्मिक क्षेत्र में भी घटित करने की आवश्यकता है। जब तक RSSC06073 90009090
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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