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________________ पपीते से भय के समान पाप से भय रखो - उस फूलचंद सेठ को पपीते से कैसा भय लगा? फूलचंद सेठ को एक दिन उदर-शूल की वेदना हुई। किसी भी प्रकार से वेदना शान्त नहीं हो रही थी। एक साथ एक सौ सुइयाँ चुभ रही हों ऐसी वेदना थी जो न तो मिट रही थी और न सहन हो रही थी। अब क्या किया जाये? सेठ का ज्येष्ठ पत्र जीवचंद समीपस्थ ग्राम निवासी तरभाशंकर वैद्य को बला लाया। इनकी उस क्षेत्र में अत्यन्त ख्याति थी। इन्हें लोग दूसरा 'धनवन्तरी' मानते थे। भारी भारी रोगों को मिटाने की तरभाशंकर वैद्य में कला थी। वैद्य ने सेठ की परीक्षा करके पुड़ियाँ बाँध दी और कहा, "अब भविष्य में आप दही अथवा दही से बनी किसी भी वस्तु का सेवन न करें। यदि यह नियम भंग करोगे तो काल के ग्रास बन जाओगे। फिर मैं भी आपको बचा नहीं सकूँगा।" फूलचंद सेठ की वेदना इतनी भयानक थी कि वह वैद्य जो कहे वह करने के लिये तत्पर था। उसने वैद्य की बात स्वीकार की। वैद्य ने तुरन्त एक पुड़िया उसे खिलाई और वे दस मिनट तक नहीं बैठे रहे। दस मिनट में पुड़िया ने अपना चमत्कार बता दिया। सेठ का उदर-शूल शान्त हो गया। सब लोग आश्चर्यचकित होकर वैद्य की ओर देखने लगे। तत्पश्चात् वैद्यजी अपने निवास पर चले गये। तत्पश्चात् बीस वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन सेठ के घर श्रीखंड़ बना। सब लोगों ने सेठ को भी थोड़ा श्रीखंड़ खाने का आग्रह किया और उन्होंने भी सबकी बात मानकर थोड़ा श्रीखंड़ खा लिया। तीन-चार घंटों के पश्चात् वर्षों पुराना उदर-शूल होने लगा। सेठ मछली की तरह तड़पने लगे। वेदना असह्य थी। सेठ का ज्येष्ठ पुत्र तरभा वैद्य के पास भागा। भाग्यवश अभी तक वयोवृद्ध वैद्य जीवित थे। उन्होंने तुरन्त आने से इनकार कर दिया - "जो मेरे कथनानुसार पथ्य का पालन नहीं करे, उसे मैं कदापि औषधि नहीं देता।" परन्तु जीवचंद ने अत्यन्त अनुनय-विनय की, वह उनके चरणों में गिरा तो वैद्य का हृदय द्रवित हो गया और वे फूलचंद के घर आये। उन्होंने पथ्य नहीं पालने के कारण सेठ को अत्यन्त उपालम्भ दिया, फिर औषधि दी और कहा, "भविष्य में आप पपीता कदापि नहीं खायें।" सेठ ने उत्तर दिया, "आपकी बात स्वीकार है।" सेठ का रोग चला गया। तत्पश्चात् फूलचंद सेठ ने सदा के लिये पपीता खाना त्याग दिया। इतना ही नहीं यदि पपीते बेचने वाला ठेला मार्ग में खड़ा होतो सेठ उस मार्ग को छोड़ कर अन्य मार्ग से जाता। ऐसा भय लग गया था फूलचंद सेठ को पपीते से। मार्गानुसारी आत्मा को भी पाप से ऐसा ही भय होता है जिससे वह यथा सम्भव पाप करता ही नहीं। NGOOGOKe 6s SOOOOOOOK
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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