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________________ 306 में भ्रमण करने के पश्चात् अब आपको भारतवासी कैसे प्रतीत होते हैं?'' स्वामीजी ने उत्तर दिया, “विदेशों में जाने से पूर्व भारतवासी मुझे प्रेम करने योग्य प्रतीत होते थे, परन्तु अब तो मुझे वे पूजनीय प्रतीत होते हैं।'' शिष्टतापूर्ण इस देश के प्रति विवेकानन्द के अन्तर में कितना अद्भुत आदर था। पाश्चात्य लोगों की अशिष्टतापूर्ण कथा ce i sassDJAN पाश्चात्य लोगों में कुछ स्थानों पर कैसी घोर अशिष्टता व्याप्त है, जिसकी एक छोटी सी घटना कुछ समय पूर्व एक गुजराती साप्ताहिक में पढ़ी थी, जिसे पढ़कर शिष्ट जनों के अन्तर में व्यथा उत्पन्न हुए बिना नहीं रहेगी। लंदन में एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसकी लेखिका हैं इेबोराह मोगाचे । पुस्तक का विषय है - वीर्यदान के द्वारा सन्तान उत्पन्न करने के प्रयोग करने से कितनी गड़बडी उत्पन्न होती है उस पर आधारित एक उपन्यास । उपन्यास का विषय लेखिका ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर लिया है। डेबोराह के दो बच्चे थे। उसकी बड़ी बहन का विवाह होने के पश्चात् उसके कोई सन्तान ही उत्पन्न नहीं हुई। अनेक उपचार कराने पर भी उसके सन्तान नहीं हुई। तत्पश्चात् कृत्रिम वीर्यदान के द्वारा उस बहन के सन्तान हो उसके लिये प्रयास किये गये। अनेक प्रकार के उपचारों एवं वीर्यदान के प्रयोगों से बड़ी बहन परेशान हो गई, क्योंकि उससे भी सन्तान नहीं हुई । अन्त में उसने अपनी छोटी बहन के समक्ष एक प्रस्ताव रखा, "बहन ! मेरे सुख के लिये तू अपना पति कुछ समय के लिये मुझे दे दे।" शिष्ट-3 -जन कान से भी नहीं सुन सकें ऐसे उस प्रस्ताव को उस छोटी बहन ने स्वीकार भी कर लिया। उसने अपना पति अपनी बड़ी बहन को कुछ समय के लिये ऊछीना दे दिया। विशेषता तो यह रही कि उस बड़ी बहन के पति ने भी पुत्र की लालसा में ऐसे अत्यन्त अशिष्ट व्यवहार की सम्मति भी दे दी। बड़ी बहन का शारीरिक सम्बन्ध डेबोराह के पति के साथ होने लगा, जिससे वह गर्भवती भी हुई और उसके बालक भी हो गया, परन्तु तत्पश्चात् भारी कठिनाई उत्पन्न हो गई कि जिस कारण डेबोराह के पति के साथ उसकी बड़ी बहन ने सम्बन्ध स्थापित किया था, वह कारण पूर्ण होने के पश्चात् भी उन सम्बन्धों का अन्त नहीं हुआ और इस प्रकार डेबोराह की दशा तो 'भवन लेते गुजरात खोने' जैसी हो गई। यह सम्पूर्ण सत्यकथा स्वयं डेबोराह ने "टू हैव एण्ड टू होल्ड' शीर्षक अपने उपन्यास में 45 S X900 se
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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