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________________ हम महत्त्व प्रदान करेंगे। धूर्त-रिश्वतखार प्रधानों तथा घोर अनीति एवं विश्वासघात करके करोड़पति बने धनी व्यक्तियों को हम तनिक भी महत्व नहीं देंगे। तस्करी करके समाज के अग्रगण्य नायक बन बैठे व्यक्तियों तथा सफेदपोश समाज-ठग धूर्त व्यक्तियों को विशिष्ट प्रसंगों पर कदापि निमन्त्रित नहीं करेंगे, उन्हें कदापि महत्त्व नहीं देंगे। यदि नीतिवान्, ईमानदार और सदाचारी मनुष्यों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार, 'पद्माश्री' आदि प्रदान किये जाये तो लोगों में नीति-परायणता, ईमानदारी एवं सदाचार आदि का अत्यन्त प्रचार होगा। यदि इस प्रकार के शिष्टाचारों को हमारी सरकार प्रोत्साहन देतो तो फिर कहना ही क्या? सरकारी (राजकीय) प्रोत्साहन से समाज में शिष्टाचारों का प्रसार एवं प्रचार तीव्र गति से हो सकता आर्य संस्कृति में दो नियम थे - 1. दुष्टस्य दण्ड और 2.सुजनस्य सेवा। दुष्ट मनुष्यों को उनके कुकर्मों का कठोर दण्ड देना चाहिये, जिससे समाज में कुकर्म करने से लोग भयभीत होंगे और कुकर्म घटते जायेंगे। राजा की यह प्रथम नीति थी। - सज्जनों की उनके उत्तम कार्यों के लिये अत्यन्त प्रशंसा करनी चाहिये। ऐसा करने से समाज में उत्तम कार्यों के प्रति लोगों के प्रेम में वृद्धि होगी और जिससे उत्तम कार्यों की वृद्धि होती जायेगी। राजा की यह दूसरी नीति थी। आजकल सरकार द्वारा दुष्टों को दण्ड देने और अपराधियों को अपमानित करने की प्रथम नीति को तो क्रियान्वित किया जाता है, परन्तु 'सज्जनों के सम्मान' की द्वितीय नीति का क्रियान्वयन होता प्रतीत नहीं होता। यदि शीलवान, सदाचारी, ईमानदार आदि मनुष्यों का सम्मान हो तो इसकी भी लोगों में अभिवृद्धि होगी। शिष्टाचार-प्रशंसा की विपरीतता है, आजकल शिष्ट पुरुषों के आचारों की प्रशंसा के बदले कुछ अशिष्ट मनुष्यों के आचारों की अत्यन्त प्रशंसा होने लगी है। फिर वे अशिष्ट धनवान हों तो, अथवा वे अशिष्ट सत्ताधारी हों तो, अथवा वे अशिष्ट परदेशी हों तो ऐसे किसी न किसी कारणवश उन अशिष्ट मनुष्यों के आचार-विचार की, उनके रहनसहन आदि की अत्यन्त प्रशंसा होती प्रतीत होती है। भारतीय संस्कृति की निन्दा करने और पाश्चात्य संस्कृति की प्रशंसा करने का एक 'मीनिया' बन गया है, अनेक धनवानों, शिक्षितों एवं तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक फैशन हो गई
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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