SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Dee 4. मार्गानुसारी आत्मा FOGGER 1 9959585ay इन जीवों की दशा सम्यग्रहष्टि आत्माओं की पूर्व भूमिका स्वरूप है। इस कारण ही इन्हें मोक्ष के प्रति अभि रूचि होती है। इन्हें मोक्ष प्रिय लगता है और उस मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला धर्म भी प्रिय लगने लगता है। परन्तु ये जीव यह भी मानते हैं कि संसार में हैं तो अर्थ और काम भी आवश्यक हाँ ये अर्थ और काम धर्म का विनाशक नहीं होना चाहिये। धर्म को हानि नहीं पहुँचे उस प्रकार से अर्थ एवं काम को प्राप्त करने में तनिक भी आपत्ति नहीं है। इस प्रकार ये जीव केवल मोक्ष-लक्षी एवं धर्म के पक्षधर ही नहीं होते, बल्कि वे इनके साथ साथ अर्थ एवं का भी पक्षधर होते हैं। यद्यपि अर्थ एवं काम को उपादेय मानकर प्राप्त करने में अनेक भयस्थान हैं, ऐसी आत्मा कब, किस क्षण भयंकर पापों की गहरी खाई में गिर पड़े उसका कोई विश्वास नहीं है। फिर भी ये आत्मा अर्थ एवं काम को उपादेय मानती हैं, उसी प्रकार से मोक्ष एवं धर्म को भी उपादेय (प्राप्त करने योग्य) मानती हैं, मोक्ष एवं धर्म के प्रति इनकी अभिरूचि होती है। इस कारण ही इन्हें इस अपेक्षा से 'उत्तम' अवश्य कहा जा सकता है और इस दृष्टि से ही इन आत्माओं को मार्ग (मोक्ष) का अनुकरण करने वाले अर्थात् 'मार्गानुसारी' कहा जाता है। "अर्थ एवं काम को तो प्राप्त करना ही चाहिये। इनकी विचारधारा का यह प्रथम चरण अनुचित है, अधर्म-स्वरूप है, फिर भी ये अर्थ एवं काम धर्म में बाधक नहीं होने चाहिये।" इनकी विचारधारा का यह द्वितीय चरण उचित होने से, धर्म स्वरूप होने से ही इन्हें 'मार्ग का अनुकरण करने वाले' माना जाता है। मार्गानुसारी आत्मा धीरे धीरे आगे बढ़ने से विशेष प्रकार से सद्गुरु भगवंतों का योग आदि प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन भी प्राप्त कर लेते हैं और इससे भी आगे बढ़ने पर देशविरति एवं सर्वविरति धर्मों का भी स्पर्श कर लेते हैं। - (5) मिथ्यादृष्टि आत्मा ये आत्मा आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वथा हीन कक्षाके हैं। हाँ, भौतिक दृष्टि से ये अत्यन्त आगे बढ़े हुए भी हो सकते है । * कदाचित् करोड़पति अथवा अरबपति भी हो सकते हैं। * * कदाचित् अत्यन्त रूपवती रमणी के ये स्वामी भी हो सकते हैं। * * कदाचित् ये किसी शासन की विशिष्ट सत्ता के स्वामी भी हो सकते हैं। * कदाचित् वे सुन्दर एवं बुद्धिमान् सन्तानों के पिता भी हो सकते हैं। * 'कदाचित् वे समाज अथवा राष्ट्र में अत्यन्त प्रतिष्ठित पदधारी अग्रगण्य व्यक्ति भी हो सकते हैं। 3 Ge 14900 voy
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy