SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ वनमालीदासभाई पिछले १३ वर्षों से अवड्ढ एकाशन के साथमें ठाम चौविहार भी करते हैं, अर्थात् अहोरात्रमें केवल एक ही बार भोजन के समय में ही वे पानी पीते हैं !!!... आज्ञांकित सुशील धर्मपत्नी एवं सुविनीत दो पुत्र तथा पौत्रादि विशाल परिवार होते हुए भी एकत्व भावना की पुष्टिके लिए वनमालीदासभाई अहमदाबादमें सुप्रसिद्ध हठीसींग की बाड़ी की धर्मशालामें उपाश्रय के पास के कमरे में अकेले ही रहते हैं । संथारे पर शयन करते हैं । सचित्त (कच्चे) पानी से स्नान भी नहीं करते । केवल रोटी एवं शाक जैसे २ - ३ सामान्य द्रव्यों को स्वयं पकाकर अवड्ड एकाशन करते हैं । प्रत्येक महिने की प्रारंभिक तिथि को केवल एक ही द्रव्य से आयंबिल करते हैं । ४२ वर्षों से आम का त्याग है । सक्कर से बनी हुई किसी भी वस्तु का भोजन नहीं करते हैं । पर्युषण महापर्व के दिनोंमें दो टाईम व्याख्यान-श्रवण आदि कारणों से रसोई करने का जब समय नहीं मिलता है तब वे केवल केले खाकर भी ठाम चौविहार अवड्ड एकाशन कर लेते हैं। सं.२०३१ में अहमदाबादमें किसी कच्छी जैन साध्वीजी की प्रेरणा से वनमालीदासभाई ने श्रावक के १४ नियमों की प्रतिदिन धारणा करने का प्रारंभ किया एवं उसी दिनसे घी एवं गुड़के सिवाय बाकी की चार विगइयों का त्याग कर दिया । . संयमी जीवन शैली के कारण से वे प्रायः बिमार नहीं होते हैं। फिर भी प्रारब्धवशात् कभी थोड़ीसी भी बुखार आने की संभावना लगे तब वे चौविहार उपवास कर लेते हैं । एलोपथी दवाओं का सेवन नहीं करने का मका नियम है । ज्वरस्य लंघनं श्रेय : अर्थात् बुखार के समय में आहार त्याग श्रेयस्कर है । आयुर्वेद के इस सूत्र के अनुसार वे बुखार में आहार त्याग करते हैं एवं मानते हैं कि, 'अतिथि को अगर खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं देंगे तो वह कब तक हमारे घरमें रह सकता है !...' आजसे करीब २२ साल पूर्व अहमदाबादमें लुणसावाड़ा उपाश्रयमें
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy