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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ आजीवन ठाम चौविहार अवड्ढ एकाशन तपके बेजोड़ आराधक वनमालीदासभाई भावसार गुजरात में महेसाणा जिले में महुड़ी (मधुपुरी) तीर्थ के पास आये हुओ वाग्पुर गाँव में वि.सं.१९८५ में मृगशीर्ष शुक्ल १४ दि. २५-१२१९२८ के शुभ दिनमें जगजीवनभाई भावसार नाम के सद्गृहस्थ के घरमें तेजस्वी पुत्र-रत्न का जन्म हुआ । बालक का नाम वनमालीदास रखा गया। जगजीवनभाई कपड़े रंगने का व्यवसाय करते थे एवं कुलपरंपरागत वैष्णव धर्म का पालन करते थे । मगर कपडे रंगवाने के लिए आते हुए श्रावकों के परिचय से उन को अहिंसा प्रधान जैन धर्म का रंग लग गया। फलतः कपड़े रंगने के लिए उबले हुए पानी एवं रंगों की मिलावट द्वारा होती हुई असंख्य जीवों की हिंसा से उनका कोमल हृदय पिघल गया एवं उन्होंने इस व्यवसाय को जलाञ्जलि दे दी । "संग वैसा रंग" एवं "सोबत वैसा असर" यह इसका नाम । ७ वर्ष की बाल्यवयमें वनमालीदासभाई अपने पिताजी के साथ अहमदाबाद आये । वे किसी की भी सत्प्रेरणा का तुरंत स्वीकार करने की प्रकृतिवाले थे । फलतः उसी वर्ष में अमथीबाई नामकी विधवा श्राविका की प्रेरणासे उन्होंने प्रतिदिन नवकारसी एवं जिनेश्वर भगवंत की पूजा करने का प्रारंभ कर दिया । सं.२००५ में केवल २० वर्ष की उम्र में पू. मानविजयजी म.सा.की प्रेरणासे आजीवन नवकारसी एवं चौविहार करने की प्रतिज्ञा ली । उस समय उनकी शादी को केवल २ वर्ष ही हुए थे । युवावस्था । के प्रारंभ में भी नियमबद्ध जीवन जीने की कैसी अनुमोदनीय भूमिका !.. उनकी शादी सं. २००८ में हीराबेन के साथ हुई थी। उन्होंने सं. २०२० में ३५ वर्ष की वयमें आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया, उसमें भी निमित्त अच्छे मित्रकी संगति ही बनी, जो इस प्रकार है। एकबार उनके एक मित्रने कहा कि 'मैं अंधेरी रातमें भी सूईमें बहुरत्ना वसुंधरा - १-1
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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