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________________ ........ . ......................................... .... .0000000 म .00000000000000000000000000000000000000000000000 २३० ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए सजगता !..... ...५०० २३१ रसनेन्द्रिय को जीतनेवाले संत !. .........५०० २३२ आधाकर्मी दोष से बचने के लिए शीघ्रविहार !......... .. ......५०१ २३३ अद्भुत गुरुभक्ति !... .............५०१ २३४ वर्षीतप के प्रत्येक पारणे में नाक से दूध-पान ! ... ........५०१ २३५ "व्याधि अर्थात् कर्म निर्जरा का सुनहरा मौका ! ................... ............५०१ २३६ बिना सहायक आदमी, नागपुर से शिखरजी विहार यात्रा... यात्रा...........................५०२ २३७ लघुता में प्रभुता बसे !... ............५०२ २३८ अद्भुत मितव्ययिता ! .................. ...........५०२ २३९ अद्भुत सादगी !.... ........... ........५०३ २४० पैसे के काम का कहना बन्द !... ............५०३ २४१ स्वोपकार के भोग से परोपकार संभव है ?..... ............५०३ २४२ वंदनीय पापभीस्ता !.... ...... ......... ५०३ २४३ दूधपाक से अन्जान खाखी महात्मा !........... ..........५०४ २४४ आदर्श गुरु-आज्ञा पालन !..................... ...........५०४ २४५ आधाकर्मी मुंग के पानी पर असच !. ...... .......५०५ २४६ रोज रात्रिमें एक ही बेठक में ४ घंटे जाप !.. .........५०५ २४७ प्रत्येक पत्र के हिसाब से १० खमासमण !......... ............५०५ २४८ शिष्यों के प्रति अद्भुत हितचिन्ता ! ........ .... ...........५०६ २४९ नमनीय नवकार निष्ठा !... .........५०६ २५० पदवी की महानता, फिर भी आसन की अल्पता !...... .......५०६ २५१ निष्परिग्रहिता की पराकाष्ठा !..... ........ ५०७ २५२ मोह को मारने का उपाय !. .........५०७ २५३ कागज की मितव्ययिता !.... ...........५०७ २५४ निर्दोष पानी के लिए २० मील का विहार !.......... ........५०७ २५५ शल्योद्धार की सफल प्रेरणा ! .........५०८ २५६ बीमार शिष्य के पैर दबाते आचार्यश्री ! . .... ....... ५०८ २५७ ...केरीकी बात से आँखों से अश्रुधारा ! ......५०८ २५८ तीर्थ और शासन रक्षा के लिए अपूर्व लगन !..... ........ ५०९ २५९ ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए अपूर्व जागृति ! ........... ..........५०९ २६० संयम की आज्ञा न मिलने पर अपूर्व पराक्रम ! .... ...... ५०९ २६१ जंगल में स्वयं वेष परिधान !....... .........५१२ २६२ रोज ५०० खमासमण.. स्वहस्तसे वेष परिधान !......... ..........५१७ २६३ संयम के लिए ३ बार गृहत्याग ! आखिर.. .......५१९ २६४ संयम हेतु ५ वर्ष तक छः विगई त्याग !...... २६५ दीक्षा के लिए छः विगई त्याग... सागारिक अनशन ! .............. -500 ک ک ک ک ک +000000000000000 ک ک ک ک ک ک ک .000000000000000000000000000000000 ک ک ک ........ ५२० .....५२२
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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