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________________ जरा रुकिए... पढिए... और फिर आगे बढिए । (संपादकीय) वि. सं. २०४८-४९में हमको चातुर्मास में और गुजरात में विहारके दौरान, जन्मसे अजैन लेकिन आचरण से विशिष्ट जैन हों ऐसे कुछ आराधक-रत्नों का परिचय होता रहा । जिनको याद करने से अहोभाव उत्पन्न होता है और जिनका जीवन अनेक आत्माओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है ऐसे उपरोक्त प्रकार के आराधकरत्नोंके अर्वाचीन दृष्टांत प्रवचनादिमें भी अत्यंत असरकारक होने से उनका संक्षिप्त विवरण डायरीमें लिखने का प्रारंभ किया । गृहस्थ होते हुए भी करीब साधु जैसा जीवन जीनेवाले उत्तम आराधक श्रावकोंके भी अहोभाव प्रेरक दृष्टांत मिलने लगे, उनका भी संकलन होने लगा। चतुर्थ आरे के या महाविदेह क्षेत्र के महापुरुषों की याद दिलानेवाले उच्च संयम जीवन जीनेवाले मुनिवरों का भी परिचय हुआ। मार्गानुसारिता की भूमिका में रहे हुए कुछ आत्माओं का अत्यंत अनुमोदनीय जीवन दृष्टिगोचर हुआ । प्रवचनों में और सत्संगमें ऐसे अर्वाचीन आराधक-रत्नों के दृष्टांतों का कल्पनातीत सुंदर प्रभाव पड़ने लगा । क्वचित क्षमापना पत्रों में भी ऐसे २-४ दृष्टांतों की अभिव्यक्ति करने पर चारों ओरसे अत्यंत अनुमोदना के प्रतिभाव आने लगे । .. परिणामतः श्रीदेव-गुरुकी असीम कृपासे ऐसी अंतःस्फुरणा हुई कि श्री जिनशासनमें, अनेक संघोंमें, गाँव-नगरों में ऐसे ऐसे अनेक आराधक-रत्न होंगे । उन सभी का यथाशक्य संकलन करके यदि प्रकाशित किया जाय तो प्रमोदभावना से भावित होने की प्रभुआज्ञा का पालन होने के साथ साथ उन उन आराधक आत्माओं को भी अधिकतर आराधनामय जीवन जीने का प्रोत्साहक बल मिलेगा और अन्य हजारों-लाखों आत्माओं को 33
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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