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________________ न जाने विद्वत्ता के गुमान में भी भद्रिकता गुणधारी अजैन हरिभद्र को मिला मार्ग, ज्ञानमार्ग का दिया बना दे । अरे कोशा वेश्या को भी श्राविका बना दे ।। शायद सभी को शासनरागी बनाने हेतु ही सारंग श्रेष्ठी सिर्फ नमस्कार महामंत्र बोलने वाले की अनुमोदना हेतु सुवर्ण की झोली लेकर फिरते थे और नवकार प्रेमी को नमस्कार कर एक सुवर्णमुद्रा देकर प्रोत्साहित करते थे । मंत्रीश्वर पेथड़ की धर्मपत्नी भी जिनालय के दर्शन हेतु जाते वक्त नित्य सवा शेर सुवर्ण दान देकर सामान्य जन में भी धर्मप्रीति का वपन करती थी। जब महाजन वर्ग भी अनुमोदना द्वारा अनेकों को महाजन बना सकते हैं, स्वयं का भी कल्याण कर सकते हैं तब अत्यंत अल्प मूल्य दान द्वारा मूल्यवान सार्वभौमिक प्रगति पाने की सरल राह-अनुमोदना को दिल देकर करने में कृपणता हम भी क्यों रखें ? । गुणवानों की इर्ष्या करने वाला तो स्वयं कितना ही महान क्यों न हो, असूया से महापतन पाता है । स्वयं के शिष्य की इर्ष्या कर आचार्य नयशीलसूरि मरकर सर्प ही बने हैं न ? शोक्य की प्रगति न देख सकने वाली महाशतक की पत्नी रेवती मरकर छट्टी नरक में चली गई है ! जब कि ऋषभदेवादि तीर्थंकरों की आहार भक्ति से अनुमोदना करने वाले जैन अजैन श्रेयांस-सोमदत्त इत्यादि सभी या तो उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर गये हैं या फिर आगामी भव में जाने वाले हैं। पुरोहित पुत्र देवभद्र-यशोभद्र भी परगुण स्वदोष दर्शन से प्राप्त चित्त निर्मलता से वृक्ष पर बैठे-बैठे जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त कर गये है। कहा भी तो है न कि. "परगुणगहणं छंदाणुवत्तणं हिअमकक्कसं वयणं' निच्चं-सदोसगहणं, अमंतमूलं वसीकरणं । रूपवान स्त्री की मुनिभक्ति एवं मुनिराज की निःस्पृहता की मन से अनुमोदना करके इलाचीकुमार जैसा नट भवनाटक को अंत करनेवाला -(29)
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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