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________________ सोपान ग्रहण कर जन- सज्जन की ऊँचाई से ऊपर उठ जैन बन गये और जिन्होंने जीवन को धर्म का उपवन बनाना मानो ठान लिया है। दो सागरोपम की विशाल आयु स्थिति धारण करने वाला देव भले ही सिर्फ एक मास में एक ही बार श्वासोच्छवास से जीवन जी लेता हो, या फिर उसकी भूख भले ही दो हजार वर्ष की लंबी अवधि के अंतर खुलती हो, ज्ञानी की दृष्टि में वैसे निराले जीवन की कीमत कुछ भी नहीं, क्योंकि देव के पास धर्म पुरूषार्थ नहीं है । वैसे ही मनुष्यावतारी युगलिक देवउत्तरकुरू में भले ही सिर्फ ४८ दिनों में तो युवावस्था प्राप्त कर तीन पल्योपम (असंख्य वर्ष) की अवधि तक महामानव सी उपमा युक्त निरोगी जीवन जी लें किन्तु वहाँ धर्म मार्ग ही नहीं है, जिससे मोक्ष मार्ग भी महीं, वैसी भौतिक अवस्था की कीमत भी ज्ञानियों ने नहीं की है I बस इसीलिये ही सर्वोच्च जैन धर्म को भाग्य से नहीं तो पुरूषार्थ से प्राप्त कर मोक्ष मार्ग के प्रति कदम चलाने वाले इस पुस्तक के सत्य-पात्रों के प्रारब्ध की प्रशंसा करें कि पुरूषार्थ की ? हिन्दुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में पाद- विचरण द्वारा स्वयं निरीक्षित एवं अन्य से प्राप्त BIO-DETA आदि के आधार पर श्रमसाध्य यह पुस्तक गुजराती के बाद हिन्दी में प्रकाशित कर राष्ट्रभाषा प्रेमी तक प्रेरणा का स्रोत बहाना शायद धैर्य- स्थैर्य सिद्ध करने वाले पू. गणिवर्य श्री महोदय सागरजी म.सा. ही कर सकते थे । पुस्तक के सत्य उदाहरण भले ही अजैन जैन को प्रकाश में ला रहे हैं, किन्तु उनको पढ़कर जन्मत: जैन को भी शरमिंदा होना पड़े या अपने को अंधकार में पड़ा महसूस करना पड़े तो आश्चर्य नहीं । पुरूषों की ७२ कलाओं में एक कला है ईषदर्थ कला, जिससे अल्प आधार पर अनल्प को प्राप्त किया जा सकता है । वैसे ही सिर्फ अनुमोदना की सफल कला जिसे हाँसिल हो जाय उसे सकल कला का सार मिल जाता है, क्योंकि वह भी करण - करावण जितना ही आत्मिक लाभ अनुमोदना के अनुसरण द्वारा प्राप्त कर सकता है । किन्तु यह अनुमोदना भी वीतराग - सर्वज्ञ प्रणीत शुद्ध धर्म के पादयात्री की करने से लाभ है, अन्यथा वीतरागी प्रभु वीरने भी गलती से 'यहाँ भी धर्म है, वहाँ भी है' जैसे वाक्य द्वारा अप्रशस्त धर्म की 27
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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