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________________ प्रास्ताविकम् .... प्रशंसनाच प्रस्तुतकर्ता : गच्छाधिपति पं. पू. आ. श्री जयघोष सूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य मुनि जयदर्शन वि. म.सा. । __जलका सदुपयोग जीवन दे सकता है जब कि दुरूपयोग जीवन ले सकती है । अग्नि पेट की भूख बुझा सकता है तो जलने वाले को भी मार दे सकती है। काले कौओ की कर्कश आवाज है तो गंदगी की सफाई की कुशलता भी। गद्धे का भूकना भैरवता है तो भार उठाना गुणवत्ता है । वैसे ही दुनिया में बहुत कुछ NEGATIVE ISSUES हैं जिससे ही तो POSITIVES की कीमत बढ़ जाती है। __इस प्रकार से दोषेषु गुण संशोधन की प्रकृति ही गुणानुरागी बनाती है, जिसके विरूद्ध दोषदृष्टि अच्छे गुणवानों की भी अनुमोदना रोककर असूयावश निंदादि दुष्कर्म में प्रेरित करती है। तभी तो उक्ति है' गुणिषु दोषाविष्करणं हि असूया' । दुनिया में एक भी जड़ या जीव पदार्थ ऐसा नहीं है, जिसमें छोटा-मोटा कोई गुणन हो । हम जैसी दृष्टि रखते हैं, सृष्टि भी वैसी ही लगती है । लाल चश्मा पहनने वाले को सफेद वस्तु भी तो लाल ही लगती है न ? जो भी हो, किन्तु यह निश्चित है कि यदि जिनशासन जैसा कठोर सा अनुशासन नहीं होता तो जीव की स्वतंत्रता सभर मुक्ति दशा तो दूर, किन्तु व्यवहार में भी स्वच्छंदता ही होती । संयम के व्रत-नियम का ही तो प्रभाव है कि स्वर्ग से लेकर अपवर्ग के सुख की संप्राप्ति भी है । दुर्योधन को काँटे ही काँटे दिखते हैं जब कि सुयोधन की नजर गुलाब की ओर रहती है । नजर-नजर में ही फर्क के कारण से ही तो संसार की विषमता है न ? क्यों हम भी सर्वज्ञ द्वारा प्रदत्ता गुण दृष्टि का माध्यम स्वीकृत कर स्वयं भी गुणवान बन जाने से चूकें ? प्रस्तुत पुस्तिका ऐसे ही जनसमुदाय की सत्य कहानियां हैं जिनको कुदरत ने जगतश्रेष्ठ जिनधर्म से जन्मतया दूर रखने को चाहा किन्तु वे लोग छोटे-मोटे निमित्त के -26
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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