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________________ ३८४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ दि. १४-११-९९ को ५०० आयंबिल का पारणा होने के बाद भविष्य में अठाई के पारणे आयंबिल से वर्षीतप करने की भावना वे रखती हैं !!! विशेष आश्चर्य की बात यह है कि इतनी दीर्घ तपश्चर्याओं के दौरान भी वे हमेशा घर के सभी कार्य स्वयं करती हैं । तपश्चर्या में इतनी स्फूर्ति का कारण उन्होंने पूज्य दादा गुरु श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी म. सा. की अनेक बार स्वप्न में प्रेरणा एवं कृपा को बताया था । सचमुच, ऐसी महातपस्वी आत्माओं की जितनी अनुमोदना करें उतनी कम ही है । महातपस्विनी विमलाबाई पारख की तपश्चर्या में अनंतराय न करते हुए सहायक बनने वाले समस्त पारख परिवार भी अत्यंत धन्यवाद के पात्र है। पता : विमलाबाई वीरचंद पारख 412, Mint Street, Chennai, (T.N.) 600079 Phone : 5211447, (Resi.) 5342598 (Offi.) लगातार अतुम तप के साथ ७ बार छरी' पालक १६५ संघोंमें पदयात्रा करती हुई महातपस्वी समाविका कंचनबहन गणेशमलजी लामगोता वि.सं. २०५३ में फाल्गुन सुदि ३ का शुभदिन था । राजस्थान के नारलाई तीर्थ से प्रयाण करके शंखेश्वरजी महातीर्थ की और जाता हुआ छ'री' पालक पदयात्रा संघ उपरोक्त दिन में उत्तर गुजरात के विसनगर शहर में आया ! संघवी श्री ताराचंदजी रतनचंदजी परिवार के सौजन्य से निकले हुए इस संघमें युवकजागृतिप्रेरक, विद्वद्वर्य, सुसंयमी, प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. थे योगानुयोग उसदिन हमारी उपस्थिति भी विसनगर में थी। निश्रादाता के रूप में बिराजमान थे। इसलिए पूर्वपरिचित आचार्य भगवंतादि चतुर्विध श्री संघ के दर्शन हेतु हम भी विसनगर से १॥ कि.मी. की दूरी पर खेत में जहाँ श्री संघ का आवास स्थान था वहाँ गये थे । आचार्य भगवंतश्री की अमृतमयी देशना सुनने की प्रबल भावना थी । मगर सौजन्यशील,
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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